मध्यप्रदेश में इस बार चुनावी घमासान तेज होता दिख रहा है। मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। भाजपा लगातार तीन बार से सत्ता पर काबिज है और कांग्रेस इस बार वापसी के लिए जबरदस्त जोर लगा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वरिष्ठ नेता कमलनाथ और युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपी है।
कांग्रेस ने इस बार जातिगत आंकड़ों को देखते हुए अपनी रणनीति बनाई है। भले ही बसपा से उसका गठबंधन न हो पाया हो, लेकिन अन्य दलों के वोटरों पर उसने नजरें गढ़ा दी हैं। मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी 15.2 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी 20.8 फीसदी है। ये मतदाता चुनाव में अहम भूमिका अदा करते हैं। राज्य में अनुसूचित जाति की 35 सीटें हैं, जिसमें फिलहाल 28 पर बीजेपी काबिज है।
इसके अलावा राज्य में 47 अनुसूचित जनजाति बहुल सीटों में से 32 पर बीजेपी काबिज है। यहां बसपा भी एक बड़ा फैक्टर है। प्रदेश में बसपा को करीब 7 फीसदी वोट मिलते रहे हैं और मौजूदा समय में उसके पास 4 विधायक हैं। जीजीपी और छोटे दलों को लगभग 6 फीसदी वोट मिले थे।
कांग्रेस की नजर इसी वोट बैंक पर है। वह इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है, यही वजह है कि वह बसपा से गठबंधन न होने के बावजूद बेफिक्र नजर आ रही है। बसपा ने इस बार अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है। जबकि छत्तीसगढ़ में वह अजीत जोगी की पार्टी के साथ गठजोड़ कर कांग्रेस को झटका दिया है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार सत्ता विरोधी रुझान का सामना कर रहे हैं। किसानों की नाराजगी तो एक तरफ है ही, एससी-एसटी एक्ट के विरोध का मामला भी उनपर भारी पड़ रहा है। इसके अलावा सपाक्स की मौजूदगी ने भी उनकी परेशानी बढ़ा दी है।