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बस्तर में मौजूद हैं बारहवीं शताब्दी के मृतक स्तम्भ

bassजगदलपुर । आदिवासियों की संस्कृति भी अजीब है, अनुमान के अनुसार आदि का अर्थ- वन में रहने वाले प्राचीन, वासी का अर्थ – निवासी या निवास करने वाले, बस्तर की संस्कृति रीति रिवाज हमारे लिए अनमोल धरोहर है। सुदूर दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा से 12 किलोमीटर ग्राम गमेवाड़ा में बारहवीं शताब्दी के मृतक स्तम्भ मौजूद हंै।मृतक स्तम्भ पत्थर तथा लकड़ी के बने होते हैं, आदिवासी जीवन में उपयोग आने वाली ऐसे विभिन्न वस्तुओं का उल्लेखन चित्र के रूप में होता है जैसे-बर्तन, गिलास, बोतल, तीर, शिकारी, आदमी, मोर, चूहा, तोता, हल, कौंआ, गाय, भैंस, बकरी, सूअर, शेर, भेड़, सांप, घर, गाड़ी, कुल्हाड़ी, फावड़ा, सब्बल, सूर्य, बगुला, चिडिय़ा, कोयल, इत्यादी चित्र मृतक स्तम्भ में अंकित रहते हैं यह बस्तर की संस्कृति अनोखा आश्चर्य है, बस्तर का मृतक स्तम्भ गांव के सडक़ दो राह, मार्ग पर किनारे बनाया जाता है, आदिवासी जातिनुसार दिशा चयन भी होता है कई मृतक स्तम्भ दक्षिण दिशा, उत्तर दिशा में है। कई जन बस्तर को प्रस्तर कहने में नहीं झिझकते, बस्तर आदिवासी अपने जीवन रूपी संगीत में समाहित हैं। बस्तर अंचल के आदिवासियों का रहन सहन रीति-रिवाज खान-पान संस्कृति, सम्मान, बस्तर आदिवासियों के जन जनजीवन की संस्कृति का प्रतीक जैसे वनखानी दियारी, बीज, पंडुम, जगार, पूजोत्सव जगह-जगह होने वाली मंडई अजीब सा प्रतीत होता है। मृतक स्तम्भ देखकर आपको अचरज लगेगा क्योंकि इसे बस्तर के अच्छादित वनों में देखा जा सकता है। आदिवासी संस्कृति में ऐसी कई प्रथा प्रचलित है, गोंड, मुरिया, माड, हल्बा इत्यादी जनजाति बस्तर के कोने में निवासरत हैं में मृतक स्तम्भ बनाने की प्रथा आदिवासी के परिजन की मृत्यु के यादगार स्मृतियों में बनाया जाने वाले मृतक स्तम्भ है।मृतक स्तम्भ पत्थर तथा लकड़ी के होते हैं जिनमें जीवन में उपयोग होने वाली विभिन्न वस्तुओं का उल्लेखन चित्र के रूप में होता है। जब कोई प्रथम बार बस्तर आगमन करता है मृतक स्तम्भ को देखकर आश्चर्य में पड़ जाता है। क्या आदिवासियों की मरणोपंरात बनाया जाने वाला मृतक स्तम्भ सडक़ों के किनारे तथा बस्तर के किसी भी जंगल में देखे जा सकते हैं।आदिवासियों के परिजन शव तब तक घर में रखते हैं, जब तक उसके सगे संबंधी रिश्तेदार न आएं, शव को ले जाते समय झूमते गाते हाथों में ढोलक मोहरी का उपयोग करते हैं। शव को दफनाने या जलाने के पश्चात घर में आकर मदिरा मांस का सेवन करते हैं, क्रियाकर्म के लिए नए-नए वस्त्र, बर्तन खरीदते हैं, दूरदराज से आए अतिथि को वस्त्र या बर्तन प्रदान करते हैं, आदिवासियों के यहां जब शोक होता है तो दूर से आए अतिथि को वस्त्र या बर्तन प्राप्त नहीं होने पर या सामग्री नहीं मिलता है तो उस घर में दोबारा फिर कभी नहीं आते।

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