गम इस कदर मिला कि घबरा के पी गए। खुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी गए। यूं तो न थी जनम से पीने की आदत। शराब को तन्हा देखा तो तरस खा के पी गए। हर नशेड़ी के पास नशा करने का एक ठोस बहाना होता है और वह कभी-कभी बिल्कुल सच प्रतीत होता है। एक फिल्मी गीत याद आता है कि पीने वाले को पीने का बहाना चाहिए। यह बहाना किसी भी तरह का हो सकता है। शराबी के लिए जाम से दोस्ती नई नहीं होती। वह उससे अंतरंग जुड़ता है। पी है शराब हर गली-हर दुकान से। इक दोस्ती सी हो गई है शराब के जाम से। बिहार के मुख्यमंत्री ने चार माह पहले राज्य के शराबियों के रंग में भंग डाल रखा है। उनकी नजर नजदीकी राज्यों पर भी है लेकिन सहयोगी दल की जरा सी बगावत ने उन्हें तोड़ दिया। झुक गए नीतीश और राज्य में ताड़ी प्रतिबंधमुक्त हो गई।

नीतीश को बिहार के शराबियों पर तरस आ गया है या कुछ और बात है लेकिन जो भी है, उससे इतना तो स्पष्ट है ही कि बिहार में नशेडिय़ों के अच्छे दिन आ गए हैं। शराब भले न मिले लेकिन उसका विकल्प मिलने में उन्हें अब कोई परेशानी नहीं है। भला हो लालू प्रसाद यादव का। उन्होंने नीतीश पर अपने परामर्श का जादू चला दिया है। राज्य के शराबी अब उनके मुरीद हो जाएंगे। मुरीद तो खैर वे पहले भी थे। तभी तो लालू प्रसाद यादव ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ताड़ी को प्रतिबंधमुक्त कराने की बात की थी। नीतीश कुमार ने लालू की बात मान ली है और उनके मद्यनिषेध मंत्री जलील मस्तान ने इस आशय की घोषणा भी कर दी है कि अब बिहार पर ताड़ी उतारने और बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा। जाहिर है, उनकी इस घोषणा से बिहार के शराबियों की बांछें खिल गई हैं। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का एक परगना है नरवन। कभी वहां हरियाली के नाम पर बस रेंड़ अर्थात अरंडी के पेड़ हुआ करते थे। एक कहावत प्रचलित थी कि नरवन में रेंड़ प्रधान। खैर अब वहां भी हालात बदल गए हैं। अब वहां आम, महुआ, नीम और बबूल के प्रमुखता से दीदार होने लगे हैं।

गौरतलब है कि बिहार उत्पाद अधिनियम -2016 लागू कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में ताड़ी की बिक्री पर पूरी तरह रोक लगा थी। इस नियम के तहत पेड़ से ताड़ी उतारने, पेड़ में छेद करने और ताड़ी बेचने पर दस साल की सजा आयद की गई थी। इस कानून से पासी जाति के लोग पूरी तरह बेरोजगार हो गए थे। बिहार में कई अन्य जातियां भी ताड़ी उतारने और बेचने के धंधे से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़ी रही हैं। इस कारोबार में महिलाएं साकी बनती रही हैं। ताड़ीखानों में हुड़दंग की भी खूब शिकायतें आती रही हैं। पहले ताड़ी पीने वालों को अधोमानक माना जाता था लेकिन अब ताड़ीखाने गुलजार हो जाएंगे। शराबी वहां बेहिचक पहुंचेंगे। स्टैंडर्ड की तो बात ही नहीं होगी। सभी रिंद एक जैसे होंगे। नीतीश सरकार का यह फैसला पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी रास आया होगा। उन्होंने ताड़ी बेचने वालों की खुलकर पक्षधरता की थी और नीतीश सरकार पर आरोप लगाया था कि वह गरीबों और दलितों का रोजगार छीनने की मंशा से ऐसा कर रहे हैं। मांझी ने तो यहां तक दलील दे दी थी कि महात्मा गांधी भी ताड़ी पीते थे। हालांकि उनके इस बयान की आलोचना भी खूब हुई थी। मांझी ने ताड़ी के फायदे भी गिनाए थे और चिकित्सकों का हवाला देते हुए कहा था कि ताड़ी पीने से टीबी और हैजा जैसी बीमारी नहीं होती। अलबत्ते उन्होंने ताड़ी में मिलावट करने वाला पर कार्रवाई करने की बात की थी। इसमें संदेह नहीं कि शराबबंदी के बाद से नीतीश कुमार पर अंदर-बाहर चौतरफा दबाव बना हुआ है। उनकी अपनी पार्टी के कई विधायक उनसे खुश नहीं हैं। राजद के विधायक अक्सर इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जताते रहे हैं लेकिन यह सब अधिकृत फोरम पर नहीं होता था। महागठबंधन की बैठक में तो ताड़ी को प्रतिबंधमुक्त करने का मुद्दा प्रमुखता से उठा और लालू प्रसाद ने तो यहां तक कह दिया कि यह बिहार की जनता से उनका चुनावी वादा है। नीतीश कुमार को झुकना पड़ा। साझ में बूझ तो वैसे भी नहीं होता। यही वजह है कि साझे की सुई भी सेंगरा पर चलती है। जीतन राम मांझी अपने बेतरतीब बयानों के लिए अक्सर चर्चा के केंद्र में रहे। मुख्यमंत्री थे तो भी और नहीं थे तो भी, उनके कहे पर किसी को भी आपत्ति हो सकती है लेकिन कुछ बातें उन्होंने खम ठोंक कर कहीं। उनमें एक यह भी थी कि नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में कई माननीय ऐसे भी हैं जो शराब पिए बिना रह ही नहीं सकते। जीतन राम मांझी ने तो इस दौरान 1 अप्रैल 2016 को वाइन फार नीतीश कैबिेनेट नामक एक अभियान भी चलाया था। एक महिला विधायक के घर तो शराब की बोतलें ही बरामद हो गईं और उसे नीतीश ने बर्खास्त भी किया था। जदयू और राजद विधायकों का नीतीश पर दबाव न रहा हो, यह कैसे कहा जा सकता है? ताड़ी तो शुरुआत है तो क्या यह माना जाना चाहिए कि जल्द ही बिहार में शराब भी लौटेगी। वैसे भी जब नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी लागू की थी तब भी उन पर कम दबाव नहीं था लेकिन कठोर फैसले नफा-नुकसान देखकर नहीं लिए जाते। रही बात नशा उन्मूलन की तो तंबाकू उत्पादों पर भी रोक लगाया जाना चाहिए क्योंकि इससे कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं लेकिन इस दिशा में तो सरकार ने विमर्श करना भी मुनासिब नहीं समझा। नीतीश कुमार अब पड़ोसी राज्यों में शराबबंदी की बात किस मुंह से करेंगे, यह देखने वाली बात होगी। उनके इस फैसले से ताड़ी बेचने वालों को तो रोजगार मिल जाएगा लेकिन नशेडिय़ों के घर का बजट नहीं बिगड़ेगा, इसकी गारंटी कौन लेगा ? बिहार विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष डा. प्रेम कुमार ने तो नीतीश के पूर्ण शराब बंदी के दावे पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं । उनकी माने तो बिहार के 16 शराब कारखाने और 2 बियर प्लांट प्रतिमाह 8.66 लाख लीटर शराब और 2.33 लाख लीटर बियर का उत्पादन कर रहे हैं और इस उत्पादन को पडोसी राज्यों में बेचा भी जा रहा है। यह किस तरह की शराब बंदी है । जबकि बिहार उत्पाद कानून के तहत जिन गावों में शराब बेचीं जाएगी, उस पुरे गावं पर जुर्माना लगेगा । मतलब करे कोई भरे कोई । इससे अच्छा तो यह होगा कि नीतीश मानव अधिकार के कुछ विशेह्स अध्याय जरुर पढ़ लें ।
— सियाराम पांडेय शांत