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बिहार में बच्चा राय से भी बड़े माफिया को पाल रही है सरकार- डॉ प्रेम कुमार

ddपटना। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ.प्रेम कुमार ने सरकार प्रदेश सरकार पर शिक्षा में हो रही अनियमितता को लेकर जोरदार प्रहार किया । उन्होंने कहा कि टॉपर घोटाले से बिहार की हर जनता वाकिफ है । इस घोटाले ने पूरे विश्व में विश्व गुरु कहलाने वाले बिहार को बदनाम कर दिया । लेकिन हमारे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा । यह सब सरकार की मिली भगत के बिना संभव नहीं है । इसके बाद भी सरकार सुधरने का नाम नहीं ले रहें है और लगातार बिहार की जनता को ठगने और यहां के विद्यार्थियों के कैरियर के साथ खिलवाड़ करने का काम कर रही है ।
डॉ.प्रेम कुमार ने आज यहां कहा कि ऐसे ही घोटाले को निमंत्रण को दे रहा है चन्द्रगुप्त इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, पटना । यहां लगातार लड़कों के भविष्य के साथ खेला जा रहा है और यह कार्य सरकार के संरक्षण में किया जा रहा है । हाल में ही कॉलेज ने एमबीए के लिए अप्लिकेशन फॉर्म निकाला जिसमें कैट, मैट, सी-मैट, जैट यानी सभी कम्पीटीशन के छात्र को फॉर्म भरने का परमिशन दिया गया तथा उसके एवज में हर फॉर्म पर शुल्क लिया है और अंत में सिर्फ कैट और जैट के छात्रों को ही लिया गया । जब सभी कम्पीटीशन के छात्रों को नहीं लेना था तो पैसे क्योँ वसूले गए । इतना ही नहीं कॉलेज ने आरक्षण का भी सही से इस्तेमाल नहीं किया है और ना ही रिजल्ट को सार्वजनिक किया गया । जबकि बिहार की हर संस्था नामांकन में पूरी पारदर्शिता रखती है। यह संस्था पूरी तरह से सरकार पौकेट की संस्था है जहां के स्टाफ भी उनके अपने हैं, उनके खास ही वहां के फैकल्टी हैं, यही नहीं वो अपने नजदीकी पदाधिकारियों को वहां के गेस्ट फैकल्टी बना दिए हैं ।
डॉ. कुमार ने कहा कि बात यही नहीं रूकती, सरकार द्वारा प्रशासनिक पदाधिकारियों को तीन महीने का मैनेजमेंट ट्रेनिंग देने का लेटर जारी किया गया और यह ट्रेनिंग देने का लेटर चन्द्रगुप्त इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के नाम से जारी हुआ जिसमें तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए इंस्टिट्यूट को प्रति पदाधिकारी तीन लाख देने का समझौता हुआ । जबकि पटना में ही सरकार की एल एन मिश्रा इंस्टिट्यूट मौजूद है तो सरकार को चन्द्रगुप्त इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में ट्रेनिंग करवाने की क्या आवश्यकता पड़ी और तीन लाख रूपये प्रति पदाधिकारी क्यों देने का आदेश दिया गया । जबकि एल एन मिश्रा दो साल के कोर्स का भी तीन लाख नहीं लेती है तो सरकार तीन महीने में तीन लाख देने को क्यों तैयार हुई । अगर सरकार को लगता है कि एल एन मिश्रा सही संस्था नहीं है तो उसे बंद कर दिया जाय अथवा जो सरकारी पदाधिकारी चन्द्रगुप्त मैनेजमेंट में गेस्ट फैकल्टी हैं उनसे ही एल. एन. मिश्रा में क्लास करवाती । जनता से टैक्स और दंड वसूल कर सरकार चन्द्रगुप्त मैनेजमेंट को क्यों फायदा पहुंचाना चाहती है ? इन बातों से यह सवाल खड़ा हो जाता है कि बिहार में शिक्षा माफियाओं का राज चलता है या यहां की सरकार ही माफिया है ?

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