महान क्रांतिकारी भगत सिंह को अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 की सुबह 7:30 बजे लाहौर में फांसी दे दी थी। 300 पेज के फैसले में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। वह देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार से लड़ रहे थे, लेकिन भारत की आजादी के 70 साल बाद भी सरकार उन्हें दस्तावेजों में शहीद नहीं मानती। अलबत्ता जनता उन्हें शहीद-ए-आजम मानती है। अप्रैल 2013 में केंद्रीय गृह मंत्रालय में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लेकर एक आरटीआई डाली गई, जिसमें पूछा कि भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को शहीद का दर्जा कब दिया गया। यदि नहीं तो उस पर क्या काम चल रहा है? इस पर नौ मई को गृह मंत्रालय का हैरान करने वाला जवाब आया। इसमें कहा गया कि इस संबंध में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। तब से शहीद-ए-आजम के वंशज (प्रपौत्र) यादवेंद्र सिंह संधू सरकार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं।