Sunday , April 28 2024

भगवान राम और श्री हनुमान की यह कथा आपने कभी नहीं सुनी होगी

बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि हनुमानजी ने रामेश्वरम के ज्योतिर्लिंग को एक बार उखाड़ना चाहा था लेकिन उस समय उनका अभिमान टूट गया था. जी हाँ, इस बारे में तमिल भाषा में महर्षि कम्बन की रामायण ‘इरामावतारम्’ लिखी है जिसमे एक कथा का उल्लेख मिलता है. आप सभी को बता दें कि यह कथा हमें वाल्मिकी रामायण और तुलसीदासकृत रामचरित मानस में नहीं मिलती है और वाल्मिकी रामायण के इतर भी रामायण काल की कई घटनाओं का जिक्र हमें इरामावतारम्, अद्भुत रामायण और आनंद रामायण में मिलता है. इसी में ऐसी एक कथा है रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना की जिसका जिक्र स्कन्दपुराण में भी है वही आज हम आपको बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं वह पौराणिक कथा.

पौराणिक कथा – इस कथा अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर लौट रहे थे तो उन्होंने गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया वहां पर ऋषि मुनियों ने श्री राम को बताया कि उन पर ब्रह्महत्या का दोष है जो शिवलिंग की पूजा करने से ही दूर हो सकता है। इसके लिए भगवान श्रीराम ने हनुमान से शिवलिंग लेकर आने को कहा। हनुमान तुरंत कैलाश पर पहुंचें लेकिन वहां उन्हें भगवान शिव नजर नहीं आए अब हनुमान भगवान शिव के लिए तप करने लगे उधर मुहूर्त का समय बीता जा रहा था। अंतत: भगवान शिवशंकर ने हनुमान की पुकार को सुना और हनुमान ने भगवान शिव से आशीर्वाद सहित एक अद्भुत शिवलिंग प्राप्त किया लेकिन तब तक देर हो चुकी मुहूर्त निकल जाने के भय से माता सीता ने बालु से ही विधिवत रूप से शिवलिंग का निर्माण कर श्री राम को सौंप दिया जिसे उन्होंने मुहूर्त के समय स्थापित किया।

जब हनुमान वहां पहुंचे तो देखा कि शिवलिंग तो पहले ही स्थापित हो चुका है इससे उन्हें बहुत बुरा लगा। तब उन्होंने श्रीराम से कहा कि ‘हे प्रभु! आपके आदेश पर मैं इतना श्रम कर ये शिवलिंग लाया हूं और आपने किसी और शिवलिंग की स्थापना कर ली। ये शिवलिंग भी तो केवल बालू का बना है इसी कारण ये अधिक समय तक नहीं टिक पाएगा जबकि मैं पाषाण से बना शिवलिंग लेकर आया हूं।’ श्रीराम हनुमान की भावनाओं को समझ रहे थे उन्होंने हनुमान को समझाया भी लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए तब श्रीराम ने कहा, ‘हे हनुमान! इसमें दुखी होने की कोई बात नहीं है किन्तु यदि तुम्हारी इच्छा हो तो इस शिवलिंग को हटा कर तुम अपने शिवलिंग की स्थापना कर दो। यदि तुम ऐसा कर सके तो हम तुम्हारे ही शिवलिंग की पूजा करेंगे।’ यह सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि उनके एक प्रहार से तो पर्वत भी टूट कर गिर जाते हैं फिर ये रेत से बना शिवलिंग तो यूंही हट जाएगा।

इसी अहंकार की भावना से हनुमान उस शिवलिंग को हटाने का प्रयास करने लगे किन्तु आश्चर्य कि लाख प्रयासों के बाद भी हनुमान ऐसा न कर सके और अंतत: मूर्छित होकर गंधमादन पर्वत पर जा गिरे होश में आने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो श्रीराम ने हनुमान द्वारा लाए शिवलिंग को भी नजदीक ही स्थापित किया और उसका नाम हनुमदीश्वर रखा। शिवलिंग स्थापित करने के बाद श्रीराम ने कहा, ‘मेरे द्वारा स्थापित किए गए ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से पहले तुम्हारे द्वारा स्थापित किए गए शिवलिंग की पूजा करना आवश्यक होगा। जो ऐसा नहीं करेगा उसे महादेव के दर्शन का फल प्राप्त नहीं होगा।’ उसी समय से काले पाषाण से निर्मित हनुमदीश्वर महादेव का सबसे पहले दर्शन किया जाता है और उसके बाद रामेश्वरम का दर्शन करते हैं।उसी समय से काले पाषाण से निर्मित हनुमदीश्वर महादेव का सबसे पहले दर्शन किया जाता है और उसके बाद रामेश्वरम का दर्शन करते हैं।

E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com