बंजर होते पहाड़ को सरसब्ज बनाने की मुहिम में जुटे पौड़ी जिले के पोखड़ा क्षेत्र के ‘भलु लगदु’ (फीलगुड) समूह ने पर्यावरण संग संस्कृति के संरक्षण को एक नायाब पहल की है। इसके तहत समूह ने ‘सरैंया’ नाम से महिला बैंड लॉन्च किया है। यह बैंड लोगों को पर्यावरण संरक्षण के साथ ही नारी सशक्तीकरण का भी सुखद संदेश दे रहा है।
पहाड़ में जाति एवं लिंगभेद की वर्जनाओं को तोड़ रहे महिलाओं के इस बैंड की गमक अब पहाड़ की कंदराओं से निकलकर देश-विदेश में बसे उत्तराखंडियों के कानों में गूंजने लगी है। संस्कृति के संरक्षण की दिशा में उत्तराखंडी महिलाओं का यह दूसरा अनूठा प्रयास है।
इससे पहले प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी डॉ. माधुरी बड़थ्वाल भी पुरुष आधिपत्य वाले ढोल-दमाऊ वादन की जिम्मेदारी महिलाओं को सौंपकर नायाब पहल कर चुकी हैं।
महानगरों की ऐशोआराम वाली नौकरी छोड़कर गांव में बंजर धरा को हरा-भरा बनाने के मिशन में जुटे युवा समाजसेवी सुधीर सुंद्रियाल की भलु लगदु संस्था का हाल ही में चौथा स्थापना दिवस मनाया गया। यह स्थानीय लोगों के साथ ही प्रवासियों के लिए भी स्मृतियों में संजो देने वाला मौका था।
इस मौके पर देश के विभिन्न महानगरों से गवाणी (पोखड़ा) स्थित फीलगुड इन्फॉरमेशन एंड नॉलेज सेंटर में जुटे सैकड़ों प्रवासी तब अवाक रह गए, जब गांव की सामान्य जातियों की सोनाली, यामिनी व लक्ष्मी ने वंशानुगत रूढिय़ों को तोड़ ढोल-दमाऊ और मशकबीन की सुमधुर लहरियों पर सरैंया नृत्य की मनमोहक छटा बिखेरी। इस दौरान वहां मौजूद जनसमुदाय ने न सिर्फ सरैंया बैंड का लुत्फ लिया, बल्कि जी-भरकर थिरका भी।
भलु लगदु समूह पहाड़ में पर्यावरण, संस्कृति व जल संरक्षण के क्षेत्र में अभिनव पहल कर मॉडल तैयार कर रही है। बीते वर्ष जून में जब वातानुकूलित कमरों में पर्यावरण संरक्षण की चर्चाएं हो रही थीं, तब सुधीर सुंद्रियाल की अगुआई में क्षेत्र के सैकड़ों पुरुषार्थियों का समूह चौबट्टाखाल में फावड़े चलाकर चाल-खाल को पुनर्जीवित करने में जुटा था। इसकी परिणति यह हुई कि क्षेत्र में सूख चुके प्राकृतिक जलस्रोत अब धीरे-धीरे पानी से लबालब होने लगे हैं।
छात्राएं को सौंपी बैंड की जिम्मेदारी
सुधीर बताते हैं कि सरैंया बैंड की जिम्मेदारी फिलहाल पांच नवयुवतियां संभाल रही हैं। इनमें सोनाली, यामिनी, लक्ष्मी, नेहा व अमीषा शामिल हैं, जो कि इंटर से लेकर बीए तक की छात्राएं हैं। इस बैंड को क्षेत्र में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में हाथों-हाथ लिया जा रहा है।
‘पुरुष चौंफला’ नृत्य समूह की भी धमक
समूह ने परंपरा की बेडिय़ों को तोड़ते हुए ‘पुरुष चौंफला’ नृत्य समूह भी गठित किया है। विदित हो कि पहाड़ में चौंफला नृत्य पर महिलाओं का ही एकाधिकार रहा है। लेकिन, अब पुरुष चौंफला समूह को अपनी प्रस्तुतियों को लिए जगह-जगह आमंत्रित किया जा रहा है।
परंपराओं से रू-ब-रू हो रहे डीयू के छात्र
क्षेत्र पंचायत पोखड़ा के प्रमुख सुरेंद्र सिंह रावत बताते हैं कि स्थानीय युवाओं में स्किल डेवलप करने के लिए डीयू (दिल्ली विश्वविद्यालय) के छात्र हर साल गांव में रहकर अपने अनुभव बांटने के साथ ही यहां की संस्कृति और खान-पान से भी रू-ब-रू हो रहे हैं। भलु लगदु समूह की पहल पर सैकड़ों काश्तकार नकदी फसलों के साथ ही उद्यान भी विकसित कर रहे हैं।