नई दिल्ली। सप्त सिंधु में गिनी जाने वाली प्राचीन एवं विलुप्त नदी सरस्वती से जुड़े वैज्ञानिक प्रमाण मिले हैं । वैज्ञानिकों ने पाया है कि जमीन के भीतर एक विशाल जल भंडार भी है । केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने शनिवार को उत्तर-पश्चिम भारत के पालेयो चैनल पर विशेषज्ञ समिति की समीक्षा और मूल्यांकन की रिपोर्ट जारी की।
इस अवसर पर सुश्री भारती ने कहा ‘यह रिपोर्ट इस धारणा की पुष्टि करती है कि सरस्वती नदी हिमालय के आदिबद्री से निकल कर कच्छ के रन से होती हुई अरब सागर में जा मिलती थी। सुश्री भारती ने खुलासा किया कि यह नदी एक समय उत्तरी और पश्चिमी भारतीय प्रांतों की जीवन रेखा थी। इसके किनारे पर ही महाभारत से लेकर हड़प्पा जैसी संस्कृतियों का विकास हुआ था।’
पालेयो चैनल पर बनी विशेषज्ञ समिति का नेतृत्व प्रख्यात भूवैज्ञानिक प्रो. के.एस. वालदिया कर रहे थे। यह रिपोर्ट राजस्थान, हरियाणा तथा पंजाब सहित उत्तर-पश्चिम भारत में जमीन की संरचना के अध्ययन पर आधारित है। इस अध्ययन में अतीत में हुए भूगर्भीय परिवर्तन का भी ख्याल रखा गया है।
रिपोर्ट सौंपते समय प्रोफेसर वालदिया ने कहा कि हम इस बात के निष्कर्ष पहुंच गए हैं कि सरस्वती नदी प्रमाणिक है वह बहती थी। वह हिमालय से उद्भव होकर पश्चिमी समुद्र की खाड़ी में जाकर मिलती थी।
वहीं सुश्री भारती ने कहा कि ‘यह रिपोर्ट वैसे भू -वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है जो भूमि की संरचना ,चट्टानों तथा खनिजों की छिपी सच्चाई को सामने लाने के विशेषज्ञ हैं और इसके लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं और इसलिए इस रिपेार्ट पर कोई शंका नहीं है।’
उन्होंने आगे कहा कि इस रिपोर्ट के अनुकूलतम प्रयोग के लिए इसका अध्ययन केन्द्रीय भूजल बोर्ड और उनकी मंत्रालय के विशेषज्ञों द्वारा भी किया जाएगा। सुश्री भारती ने कहा कि आगे की कार्यवाही के लिए इस रिपोर्ट को मंत्रिमंडल के समक्ष भी पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल की बढ़ती मांग को देखते हुए इसका उचित प्रबंधन और संसाधनों का पुन:भरण(रिचार्ज) करना सबसे महत्वपूर्ण हो गया है।
केन्द्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सरस्वती नदी कच्छ के रण में पश्चिमी सागर मिलने से पहले पाकिस्तान से होकर गुजरती थी। इसकी कुल लंबाई लगभग 4,000 किलोमीटर थी। नदी का एक तिहाई विस्तार वर्तमान पाकिस्तान में है और दो-तिहाई विस्तार लगभग 3000 किमी भारत में है।
अपनी रिपोर्ट में सात सदस्यीय समिति ने कहा है कि नदी की पश्चिमी और पूर्वी दो शाखायें थी । पश्चिमी शाखा प्राचीन काल की हिमालय से उद्भभ वर्तमान के घग्गर-पाटिआलिवाली के चैनलों के माध्यम से प्रवाहित होने वाली सतलुज थी। वहीं टोंस-यमुना के नाम से जाने जाने वाली मारकंडा और सारसुती (अपभ्रंश नाम) पश्चिमी शाखा थी ।
गौरतलब है कि पौराणिक सरस्वती नदी को जिंदा करने के लिए हरियाणा में पहले से ही खुदाई का काम चल रहा था। हरियाणा की खट्टर सरकार कई बार केंद्र से मदद के लिए गुहार लगा चुकी है। बाद में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने एक टास्क फोर्स का गठन कर इस पर शोध किए जाने का आदेश दिया था।