लखनऊ। बसपा सुप्रीमों मायावती जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर राज्यों की कीर्तिमान को भी अपनी उपलब्धि बताकर सस्ती वाहवाही लूटने का आयास करने की आवृत्ति की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि ऐसा करके वे देश की ज्वलन्त समस्याओं जैसे जानलेवा महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, अशिक्षा के साथ–साथ चुनावी वादाखि़लाफ़ी की अपनी सरकार की कमियों व घोर विफलताओं पर से लोगों का ध्यान बाँटने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि ’राजधर्म’ की घोर अवहेलना करते रहने वाले व्यक्ति से धर्म व अधर्म का उपदेश शोभा नहीं देता है।
मायावती लोकसभा में अभिभाषण के सम्बंध में धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मंगलवार को श्री मोदी के भाषण पर अपनी आतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि साथ ही, भ्रष्टाचार–विरोधी संस्था ’लोकपाल’ का अब तक भी गठन नहीं करने तथा विजय माया व ललित मोदी जैसे बड़े आर्थिक अपराधी व भगोड़े व्यक्तियों को अब तक भी देश के कानून के कठघरे में खड़ा नहीं कर पाने वाले श्री मोदी केवल लोगों को गुमराह करने के लिये ही भ्रष्टाचार व कालेधन की बात करते रहते हैं और इसी की आड़ में ही ’’नोटबन्दी’’ का अत्यन्त ही जनपीड़ादायी साबित होने वाला फैसला भी काफी अपरिपक्व तरीके से बिना पूरी तैयारी के ही ले लिया, परन्तु नोटबन्दी के फैसले के पहले अपनी पार्टी की लाखो करोडों रूपये का बन्दोबस्त कर लिया, जिसके बारे में कोई भी हिसाब–किताब देश की जनता को देने से बीजेपी व मोदी सरकार हमेशा कतराती रहती है। उन्होंने कहा कि 500 व 1,000 रूपये की नोटबन्दी के फैसले जहाँ देश की 90 प्रतिशत ग़रीब, मज़दूर, छोटे व्यापारी व अन्य ईमानदार मेहनतकश आमजनता के लिये दु:खदायी फैसला साबित हुआ है, वहीं यह खासकर महिला–विरोधी भी रहा है।
उन्होंने कहा कि आँकड़े बताते हैं कि नोटबन्दी के दुश्प्रभाव के कारण देशभर में ’घरेलू हिंसा’ काफी बढ़ी है। इस प्रकार घर की मेहनतकश महिलाओं पर इस नोटबन्दी के कारण जुम–ज्यादती व हिंया की वारदातें काफी बढ़ी है, परन्तु मोदी सरकार इन सभी चिन्ताओं से मुक्त होकर केवल अपना ही राग अलापने में लगी रहती है, जबकि इस नोटबन्दी ने सैकड़ों निर्दोष लोगों की जाने लीं व देश की अर्थव्यवस्था को बूरी तरह से प्रभावित करने के साथ–साथ बेरोजगारी तथा मजबूरी के पलायन को बढ़ाया है। इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद भी मोदी सरकार देश की जनता को इस नोटबन्दी के फैसले के बारे में कुछ भी ठोस व विश्वसनीय बात नहीं बता पा रही है, जिससे भी यह साबित होता है कि ’’नोटबन्दी’’ का उत्पीड़नदायी फैसला केवल अपरिपक्व ही नहीं बकि राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ में लिया गया।