दरअसल, राज्य में कांग्रेस अपना आधार खो चुकी है। फूलपुर और गोरखपुर के लोकसभा उपचुनावों में अकेले लड़कर कांग्रेस के उम्मीदवारों को महज 19,353 और 18,858 वोट ही मिले। पा और बसपा नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के पास अब न दलित वोट हैं, न पिछड़े और न ही अल्पसंख्यक। कांग्रेस को अधिकतर वोट सवर्णों के मिल रहे हैं जो भाजपा के भी वोट बैंक हैं। यानी कांग्रेस को मिल रहा हर वोट भाजपा के खाते से ही जा रहा है।
यदि कांग्रेस विपक्षी एकता में शामिल हो जाती है तो ये सवर्ण भी भाजपा में चले जाएंगे। इसीलिए सपा-बसपा को लगता है कि कांग्रेस के अलग लड़ने से ही उन्हें ज्यादा फायदा है। पिछले लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों के अलग-अलग लड़ने की वजह से भाजपा को सहयोगियों के साथ राज्य की 80 में से 73 सीटें मिली थीं जबकि सपा पांच और कांग्रेस दो सीटों पर ही जीत पाई थी। बसपा के खाते में एक भी सीट नहीं आई थी। यही वजह ही कि इस बार सभी विपक्षी दल साथ मिलकर लड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
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