इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक ट्रस्ट को अयोध्या के विवादित परिसर में नमाज की अनुमति से न सिर्फ इन्कार किया बल्कि कड़ी फटकार भी लगाई है। रायबरेली की इस ट्रस्ट ने अयोध्या के विवादित परिसर में नमाज पढऩे को अनुमति को लेकर याचिका दायर की थी। कोर्ट ने याचिका को खारिज करने के साथ ही ट्रस्ट पर पांच लाख रुपया का जुर्माना भी ठोंका है।
संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की एक ट्रस्ट अल-रहमान ट्रस्ट की ओर से दाखिल याचिका में उस एक तिहाई हिस्से में नमाज पढऩे की अनुमति मांगी गई थी जो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिम पक्ष को दी थी। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या की विवादित जमीन पर नमाज पढऩे की इजाजत मांगने वाली याचिका को खारिज करते हुए याची के ऊपर पांच लाख का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने रायबरेली की अल-रहमान ट्रस्ट की ओर से दाखिल याचिका को सस्ती लोकप्रियता के लिए उठाया गया कदम करार दिया।
इस प्रकरण पर इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस डीके अरोड़ा और जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने याचिका को सस्ती लोकप्रियता के लिए उठाया गया कदम करार देते हुए खारिज कर दिया। इसके साथ ही ट्रस्ट के ऊपर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना की राशि जल्दी अदा न करने पर बेंच ने जिलाधिकारी फ़ैजाबाद को राशि वसूलने के सख्त निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि फिलहाल अयोध्या भूमि विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था। जिसमें राम लला विराजमान वाला हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया। दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को आधार माना था जिसमें कहा गया था कि खुदाई के दौरान विवादित स्थल पर मंदिर के प्रमाण मिले थे। इसके अलावा भगवान राम के जन्म होने की मान्यता को भी शामिल किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि 450 वर्ष से मौजूद इस एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती।