लखनऊ। राजधानी लखनऊ में दिनोंदिन डेंगू का प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रहा है। दो दिन के भीतर शहर के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में भर्ती 40 नये मरीजों में डेंगू की पुष्टि हुई है। वहीं इस सीजन में डेंगू से अब तक आठ लोगों की मौत हो चुकी है।
यहाँ चल रहा है इलाज –
शहर के सरकारी अस्पतालों के डेंगू वार्ड मरीजों से फुल हैं। 50 से ज्यादा लोग इस बीमारी की चपेट में हैं। डेंगू के मरीजों में सिविल अस्पताल में 22 मरीज, बलरामपुर में तीन, एसजीपीजीआई में 6, लोहिया में 2 और केजीएमयू में 6 मरीज भर्ती हुए हैं। निजी अस्पतालों में भी कुछ मरीज डेंगू का इलाज करवा रहे हैं। वहीं डेंगू का डर दिखाकर कई प्राईवेट चिकित्सा संस्थान मरीजों का खून चूस रहे हैं। वही लखनऊ के जिलाधिकारी राजशेखर ने डेंगू के प्रकोप को देखते हुए शहर में सफाई व्यवस्था दुरूस्त रखने और फागिंग करने के निर्देश दिये है। वहीं जिलाधिकारी ने स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे अपने बच्चों को पूरी आस्तीन का कमीज पहनकर आने के लिए कहें।
क्या कहते है चिकित्सक –
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के माईक्रोबाइलोजी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. अमिता जैन ने बताया कि विभिन्न अस्पतालों से डेंगू की जांच के लिए आने वाले सैंपल में प्रतिदिन चार मरीजों में डेंगू की रिपोर्ट पाजिटिव आ रही है।
बलरामपुर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डा. बी.के.एस. चैहान का कहना है कि मरीज निजी अस्पतालों के चंगुल में फंस रहे है। उन्होंने कहा कि बीमारी की हालत में मरीज को सरकारी अस्पताल ही जाना चाहिए।
डेंगू का डर दिखाकर वसूल रहे बड़ी रकम –
निजी अस्पताल संचालक मरीजों को प्लेटलेट्स कम होने और डेंगू का डर दिखाकर पैसा बना रहे है। निजी अस्पताल संचालकों के इस खेल में कुछ पैथालॉजी वाले भी शामिल हैं, जो उनका साथ देकर लाभ उठा रहे हैं।
लखनऊ के टेढ़ी पुलिया निवासी रितेश (15) को कई दिनों से बुखार था। बीते शनिवार को परिजनों ने चिकित्सक को दिखाया, तो उसने कुछ जांच कराने के लिए कहा। परिजनों ने कपूरथला में नगर निगम कार्यालय के सामने एक पैथालॉजी में मरीज के खून की जांच करवाई। उसमें मरीज की प्लेटलेट्स काउंट 38 हजार निकली। प्लेटलेट्स काउंट देखकर वहां पर मौजूद महिला कर्मचारी ने मरीज की मां को इतना डरा दिया की वह तुरन्त ही बेटे को अस्पताल में भर्ती करने के लिए परिवार वालों से कहने लगी। यह सुनकर वहां की कर्मचारी ने एक अस्पताल का पता भी बता दिया। आखिरकार मरीज को लेकर परिजन इन्दिरा नगर स्थित एक निजी नर्सिंग होम पहुंचे। वहां चिकित्सकों ने मरीज को भर्ती कर इलाज शुरू कर दिया। इलाज के साथ ही वहां मौजूद कर्मचारियों से मरीज के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की गई तो वह भी लगातार मरीज की हालत गंभीर बताते रहे।
रितेश के परिजनों का कहना है कि एलाइजा जांच के बाद मरीज के खून में डेंगू की पुष्टि नहीं हुयी। उसके बाद भी यहां के चिकित्सक खतरनाक वायरल बुखार बता कर रोज नई-नई जांच करवाते रहे। बुखार के मरीज का एक्सरे और अल्ट्रासाउण्ड तक कराया गया लेकिन बीमारी के बारे में चिकित्सक नहीं बता पाये। परिजनों के बार-बार पूछने पर चिकित्सक केवल 10 से 15 दिन तक मरीज को भर्ती रखने की बात कहते रहे। ऐसा करने पर ही मरीज को लाभ होने की बात कही जा रही थी। जब मरीज को इलाज का कोई लाभ नहीं मिला, तो परिजनों ने जबरन मरीज को डिस्चार्ज करा लिया।