मनीष शुक्ल
लखनऊ। चार महीने के द्वंद्व के बाद आखिरकार अखिलेश यादव सपा के असली अध्यक्ष स्वीकार कर ही लिए गए।
सोमवार देर शाम अखिलेश गुट को साइकिल चुनाव चिह्न मिलने के साथ ही साजिशों की शह-मात का खेल खत्म हो गया और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव मैदान में जाने से पहले सपाई कुनबे में चल रही वर्चस्व की जंग में विजेता बनकर उभर आए।
अब अखिलेश का मतलब ही समाजवादी पार्टी है। वह इसी रुतबे के साथ 19 जनवरी को प्रचार का श्रीगणेश कर विधानसभा चुनावों की जंग में उतरने जा रहे हैं।
इस जंग में भले ही सपा सुप्रीमो के तौर पर मुलायम सिंह की हार हुई है लेकिन एक पिता के तौर पुत्र की जीत कहीं न कहीं राहत देने वाली है। मंगलवार से मुलायम सिंह के चुने गए उम्मीदवार अखिलेश यादव की साइकिल पर चुनाव लड़ेंगे जबकि अखिलेश अपने चहेतों को मनचाही सीट देकर पार्टी में निर्विवाद नेतृत्व संभालेंगे। जानकारों की मानें तो मुलायम भी देर-सबेर अपने पुत्र को मार्गदर्शन देने के लिए राजी हो जाएंगे।
नए साल के पहले दिन एक जनवरी को अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय अधिवेशन में जब राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाला तो उन्होंने खुद और जनता से वादा किया था कि वह यूपी चुनाव जीतकर पिता को तोहफा देंगे। उनके अध्यक्ष बनने के बाद मुलायम गुट चुनाव आयोग चला गया था। साथ ही सपा में चल रही कलह अपने क्लाइमेक्स की ओर बढ़ने लगी। लम्बे समय से चली आ रही चाचा शिवपाल से अदावत खुलकर सामने आ गई थी।
नेताजी के साथ अमर सिंह और शिवपाल यादव की जोड़ी थी तो दूसरे चाचा रामगोपाल यादव ने इस धर्मयुद्ध में अखिलेश यादव का साथ देने का फैसला लिया। प्रो. रामगोपाल ने चुनाव आयोग के सामने चार डिब्बे भरकर फाइलें और अन्य सबूत दिए। इसके साथ ही 229 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी दिखाई। 24 में से 15 सांसदों के हस्ताक्षर भी सबूत के तौर पर पेश किए। मुलायम गुट इस बीच केवल एक तर्क देता रहा कि नेताजी को अध्यक्ष पद से हटाया नहीं गया है। ऐसे में अखिलेश यादव के सारे फैसले असंवैधानिक हैं। हालांकि चुनाव आयोग का फैसला बहुमत के पक्ष में गया और रामगोपाल अखिलेश की नैया के खेवैया बन गए।
उत्तर प्रदेश में पहले चरण की चुनावी प्रक्रिया के तहत नामांकन मंगलवार से शुरू होना था। ऐसे में शुक्रवार से लेकर सोमवार तक गहन मंथन के बाद चुनाव चिह्न विवाद पर चुनाव आयोग ने अंतरिम आदेश पारित किया। अखिलेश यादव को पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न दोनों मिल गए हैं। दूसरी ओर मुलायम सिंह ने भी साफ कर दिया है कि वह साइकिल की दावेदारी के लिए कोर्ट का रुख नहीं करेंगे। ऐसे में उन्होंने अपने पुत्र की जीत पहले ही सुनिश्चित कर दी है। अब अखिलेश यादव ही सपा सुप्रीमो हैं और वह टिकट के बंटवारे पर अंतिम मुहर लगाएंगे।
साइकिल चुनाव चिह्न मिलने से एकबार फिर मुख्यमंत्री का राजनैतिक कद काफी बढ़़ गया है। ऐसे में आपसी कलह से अब तक कमजोर मानी जा रही सपा विरोधी दलों के लिए परेशानी का सबब बन सकती है।