नई दिल्ली। तीन बड़़े सियासी घरानों की ये बहू-बेटी किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। एक का घराना देश की सियासत का पुराना नाम है तो दो के घराने देश के सबसे बड़े सूबे की सियासत के।
सियासत का ककहरा बेटी के खून में है तो एक बहू ने भी पति और ससुर के पीछे रहते हुए देश और सूबे की सियासत के उलटफेर को नजदीक से देखा और जाना है। दूसरी बहू की बात करें तो सियासत के मैदान में ये उनका पहला कदम होगा।
खास बात ये है कि अगर समीकरणों ने अपना जोड़ बैठा लिया तो यूपी के चुनावी महासमर में ये तीनों बहू-बेटी साथ नजर आ सकती हैं। सपा से सीएम अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव, रालोद के जयंत चौधरी की पत्नी चारू चौधरी तो कांग्रेस से राजीव गांधी की पुत्री प्रियंका गांधी गठबंधन के बाद साथ में प्रचार कर सकती हैं।
सियासत के जानकारों की मानें तो यूपी के लिए ये पहला मौका होगा जब सियासी घरानों की तीन बड़ी महिला हस्तियां सूबे में साथ दिखाई देंगी। अब बस देरी है तो सपा-कांग्रेस और रालोद के बीच गठबंधन की घोषणा होने की। इसे वक्त की जरूरत कहें या फिर सियासत की कमान युवाओं के हाथों में आ जाने के बाद मठाधीशों की मजबूरी कि तीनों ही पार्टी गठबंधन को तैयार दिख रही हैं।
घूम-घूमकर प्रचार करेंगी तीनों
बात प्रियंका गांधी की करें तो वो यूपी चुनावों के दौरान पहले भी प्रचार करती रही हैं। लेकिन अभी तक उनका ये प्रचार यूपी के कुछ खास जिलों तक ही सीमित रहता था। सूत्रों की मानें तो ये पहला मौका होगा जब प्रियंका यूपी की करीब 150 सीट पर घूम-घूमकर प्रचार करेंगी। डिंपल यादव के मामले में पार्टी पूरी तरह से तैयार है और पार्टी की कई बैठकों के दौरान खुद मुख्यमंत्री इशारों में डिंपल यादव के द्वारा प्रचार करने की बात को कह चुके हैं। इस बार जयंत चौधरी की पत्नी चारू के आगरा की फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की बात सामने आ रही है तो इसे उनका राजनीतिक पदार्पण माना जा रहा है।
गठबंधन होने की स्थिति में ये तीनों बहू-बेटी करीब 150 विधानसभा सीट पर साथ रहकर प्रचार कर सकती हैं। राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक डॉ. मोहम्मद अरशद का कहना है कि ये यूपी के करोड़ों युवा वोटरों के लिए आकर्षण की बात होगी। चुनावों में इस तरह के प्रयोग से गठबंधन वाली पार्टियों को खासा लाभ मिल सकता है। अच्छी बात ये भी है कि राजनीति में काफी वक्त होने के बाद भी डिंपल यादव और प्रियंका गांधी की छवि बहुत साफ-सुथरी है। कभी किसी तरह की कोई गलत बयानी भी सामने नहीं आई है। ये एक वजह भी वोटरों को लुभा सकती है।
क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बेटी-बहू यानी प्रिंयका गांधी और डिंपल यादव की जोड़ी कांग्रेस-एसपी के संभावित गठबंधन के लिए सरप्राइज पैकेज होगी? क्या दोनों की जोड़ी चुनाव में गठबंधन को जीत दिलाने में सफल हो पाएगी? भले टीम अखिलेश और टीम राहुल के बीच अभी गठबंधन संबंधी औपचारिक ऐलान न हुआ हो, लेकिन इस फैक्टर पर चर्चा अभी से होने लगी है। पिछले दिनों इलाहाबाद में दोनों के पोस्टर भी देखने को मिले। हालांकि, दोनों के करीबियों का कहना है कि अभी गठबंधन की औपचारिकता बाकी है, जिसके बाद ही ऑफिशल ऐलान होगा, लेकिन तैयारियां दोनों तरफ से चल रही हैं। दोनों की जोड़ी बनाने के पीछे कई फैक्टर काम कर रहे हैं।
महिला वोटरों का दबदबा
हाल के तमाम चुनावों में महिला वोटरों ने चुनावी परिणाम को प्रभावित करने की दिशा में अहम भूमिका निभाई है। कड़े मुकाबले में जिस तरफ भी महिला वोटरों का झुकाव हुआ, उस दल या गठबंधन ने बड़ी जीत हासिल की। बिहार और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में भी ऐसा हुआ। नीतीश कुमार ने शराबबंदी और महिलाओं को पंचायत और नौकरी में आरक्षण के दांव के साथ महिलाओं का समर्थन पाया। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पहली बार महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा वोट डाले थे, ऐसे में डिंपल यादव और प्रियंका गांधी को मैदान में उतारकर इस वोट बैंक के लिए बड़ा दांव खेला जा सकता है।
बेटी-बहू की टीम
अखिलेश और राहुल के रणनीतिकारों का मानना है कि प्रियंका गांधी-डिंपल यादव को बेटी-बहू के रूप में पेश किया जा सकता है। डिंपल यादव को प्रदेश की बहू और प्रियंका को प्रदेश की बेटी के रूप में पेश किया जा सकता है। दोनों को साथ लाने की योजना पर काम कर रहे एक रणनीतिकार ने एनबीटी से कहा कि राजनीति में ऐसा कम होता है, जब इस तरह की जुगलबंदी का विकल्प पार्टी या गठबंधन के पास हो। इस जोड़ी से ग्रामीण और शहरी, दोनों जगहों की महिलाएं ज्यादा कनेक्ट होंगी।
टेक ऑफ में परेशानी नहीं
यूपी विधानसभा चुनाव में अंतिम समय में भी अगर एसपी और कांग्रेस के रणनीतिकार डिंपल यादव और प्रियंका गांधी को उतारने का दांव खेलने को तैयार हैं, तो उसके पीछे बड़ा कारण है कि पिछले एक दशक से दोनों संक्षिप्त रूप से ही, लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं। प्रियंका अमेठी-रायबरेली में कांग्रेस का प्रचार संभालने के अलावा प्रदेश के कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क में रही हैं। पिछले कुछ महीने से प्रदेश में कांग्रेस की तमाम तैयारियों से जुड़ी मीटिंग में वह हिस्सा लेती रही हैं।
यही स्थिति डिंपल यादव के साथ भी है। वर्ष 2009 में राज बब्बर से हारने के बाद भी डिंपल यादव सीमित रूप से, लेकिन राजनीति में सक्रिय रहीं। वहीं 2012 के चुनाव में वह अखिलेश के साथ कई मौकों पर नजर आईं। नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2014 के मोदी लहर में भी वह कन्नौज लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहीं। संसद से लेकर प्रदेश की राजनीति में वह पिछले एक-डेढ़ साल के दौरान काफी सक्रिय दिखीं। अखिलेश टीम के करीबियों के अनुसार, वह अखिलेश के हर बड़े फैसले में साथ रहती हैं। हावर्ड प्रफेसर स्टीव जॉर्डिंग के साथ रणनीति बनाने में भी वह अहम भूमिका निभाती हैं। प्रशांत किशोर के साथ कांग्रेस गठबंधन को लेकर जब पहली मीटिंग अखिलेश के साथ हुई, तब भी वह मीटिंग में मौजूद थीं। इसके अलावा डिंपल पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश में महिलाओं को लेकर चल रही योजनाओं से काफी सक्रिय तौर पर जुड़ी हैं, जिससे कई तरह की महिला संगठनों में उनकी पकड़ काफी मजबूत हो गई है।
दोनों महिला नेताओं के प्रति युवा वोटरों में जबरदस्त क्रेज है। यूपी में युवा मतदाता सबसे ज्यादा हैं। युवा वोटरों द्वारा इस गठबंधन का समर्थन करने से जातीय दीवारें ढह जाएंगी। दरअसल, गठबंधन को ऐसी जातियों का वोट मिल सकता है जो अभी तक इस गठबंधन को नहीं मिला है। युवाओं के समर्थन हासिल होने पर चुनाव अभियान को एक नई ऊर्जा मिल जाती है।
ताकत की बात करें तो पिछले 8 वर्षों से प्रदेश की राजनीति में डिंपल सक्रिय हैं। ऐसे में वह पूरे प्रदेश से वाकिफ हैं। महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर लगातार काम करने के कारण महिलाओं के बीच पहले ही लोकप्रियता हासिल कर चुकी हैं। एक आदर्श बहू के रूप में खुद को स्थापित कर चुकी हैं। पूरे परिवार में वह सबसे स्वीकार्य बन कर सामने आई हैं। डिंपल का कमजोर पक्ष यह है कि उनके लिए राजनीतिक रूप से स्वतंत्र किसी प्रॉजेक्ट पर अपनी छाप दिखाना अभी बाकी है। वह लोकसभा में अब तक कई मौकों पर खामोश ही रही हैं। गठबंधन में मुद्दों पर वह किस तरह लोगों से संवाद करेगी, इसे देखना अभी बाकी है।
प्रियंका की सबसे बड़ी ताकत यह है कि पब्लिक में प्रियंका को लेकर ज्यादा उत्सुकता रहती है। वह बेहतर वक्ता हैं और सहज तरीके से लोगों से संवाद करती हैं। उन्हें राजनीतिक रूप से ज्यादा समझदार माना जाता है और उनमें टीम को साथ लेकर चलने की क्षमता भी है। प्रियंका का कमजोर पक्ष भी यही है कि अब तक उन्होंने कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं संभाली है। चुनाव प्रचार में भी उनकी बहुत संक्षिप्त भूमिका रही है। पिछली बार भी गांधी परिवार के इलाके में प्रचार किया था, लेकिन उन सभी इलाकों में कांग्रेस की हार हो गई थी। अपने पति रॉबर्ट वाड्रा पर लगे करप्शन के आरोप को लेकर वह डिफेंसिव मोड में रहने को मजबूर रही हैं।