इलाहाबाद,। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बेसिक शिक्षा परिषद एवं बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा हाईकोर्ट में मनमाने तौर पर अधिवक्ता पैनल की नियुक्ति प्रक्रिया को सही नहीं माना है। कोर्ट ने कहा है कि अधिवक्ता को रखने या हटाने का ठोस आधार एवं प्रक्रिया होनी चाहिए। अधिवक्ता पैनल की नियुक्ति अधिकारियों के विवेेक पर नहीं छोड़ी जा सकती।कोर्ट ने बेसिक शिक्षा परिषद उ.प्र. इलाहाबाद के सचिव एवं सचिव बेसिक शिक्षा उ.प्र. लखनऊ से अधिवक्ता पैनल नियुक्ति करने के युक्तिसंगत आधारों का खुलासा करते हुए हलफनामा मांगा है और स्पष्ट किया है कि यदि हलफनामा नहीं दाखिल हो पाता तो दोनों अधिकारी दस्तावेजों के साथ पांच अक्टूबर को हाजिर हों। यह आदेश न्यायमूर्ति अरूण टंडन तथा न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खण्डपीठ ने एक अधिवक्ता की याचिका पर दिया है। राज्य सरकार के अधिवक्ता का कहना था कि कानूनी एवं वित्तीय मामलों में जिनसे राज्य सरकार का हित प्रभावित होता हो, राज्य विधि अधिकारी पक्ष रखेंगे। परिषद पांच वर्ष से अधिक अनुभव वाले अधिवक्ता को पैनल में रख सकती है। कोर्ट ने पूछा कि क्या अधिवक्ता पैनल रखने का कोई नियम व मापदण्ड बनाया गया है या अधिकारी जब चाहे जिसे चाहे अधिवक्ता नियुक्त कर सकते हैं या हटा सकते हैं। इस कृत्य की अनुमति नहीं दी जा सकती। अधिकारी अपनी पसंद या अहम की पूर्ति के लिए किसी को अधिवक्ता नहीं नियुक्त कर सकते। अधिवक्ता रखने या हटाने का युक्तियुक्त कारण होना चाहिए।