लखनऊ। सरकार बैंको को निजीकरण की ओर ढकेल रही है, जिसका हम पुरजोर विरोध करेंगें। यह बात शुक्रवार को स्टेट बैंक के स्थानीय प्रधान कार्यालय में बैंक अधिकारी एवं कर्मचारियों के यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स की ओर से देशव्यापी बैंक हड़ताल के अवसर पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए फोरम के प्रदेश संयोजक कामरेड वाईके अरोड़ा ने कही।
प्रदर्शन में शामिल बैंक कर्मियों को संबोधित करते हुए एसबीआईएस के महामंत्री कामरेड के के सिंह ने कहा- कि हम प्रस्तावित श्रमिक विरोधी श्रम कानून में संशोधन का घोर विरोध करते है और बैंक के बड़े बकायेदारों के खिलाफ तुरन्त कार्यवाही किये जाने की मांग करते है। सभा स्थल पर बैंककर्मी बैंकिंग क्षेत्र में निजीकरण को थोपने, बैंकों को विलय करने, मूल्य वृद्वि, जनविरोधी नीतियों, आदि समस्याओं पर केन्द्र सरकार के विरूद्व जमकर नारेबाजी की।
कामरेड दिलीप चौहान ने केन्द्र सरकार के निजीकरण के गुप्त एजेण्डे पर प्रकाश डालते हुये कहा कि सरकार द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंकों से सामाजिक बैंकिंग करायी जाती रही जो कि आज एनपीए के बड़े भूत के समान आ खड़ा हुआ है। केन्द सरकार ने अनेक स्कीमों द्वारा ऋण बटवायें गये जबकि विलफुल डिफाल्टर जो जानबूझकर आम जनता के पैसे को वापस नहीं करते हैं। उनके विरूद्ध कोई कठोर कानून नहीं बनाया गया जिसका ज्वलंत उदाहरण विजय माल्या प्रकरण है। स्टेट बैंक अधिकारी संघ के महामंत्री का. पवन कुमार ने कहा कि बैंकों के बढ़ते हुए एनपीए व अशोध्य ऋणों के चलते बैंक कर्मियों की मेहनत से कमाये मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा डूबे हुए ऋण (एनपीए) के प्रावधानों में बर्बाद किया जा रहा है।
एनसीबीई के राष्ट्रीय संयुक्त मंत्री कामरेड केके सिंह ने कि देशव्यापी बैंक कर्मियों की हड़ताल के कारण लखनऊ में लगभग 500 करोड़ तथा प्रदेश में 6000 करोड़ की क्लीयरिंग प्रभावित रही। लखनऊ के 800 एवं प्रदेश के 6500 एटीएम मशीनों द्वारा पैसा निकालने की सुविधा रही। हड़ताल में विभिन्न सरकारी बैंको की लखनऊ की लगभग 400 शाखाओं के 16000 बैंककर्मी और प्रदेश की 6500 शाखाओं के 90000 बैंककर्मी शामिल रहें।