लखनऊ। पूरी तरह एक्शन मोड में आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भर्ती में धांधलियों और एक ही जाति के लोगों को लाभ पहुंचाने की शिकायत पर उप्र लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष डा. अनिरुद्ध यादव को तलब कर उनकी क्लास ली। माना जा रहा है कि डा. यादव को बर्खास्त कर पिछली सरकार में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच करवा सकती है।
योगी सरकार की मंशा तो शपथ लेते ही स्पष्ट हो गई थी। सरकार ने गठन के दो-तीन के अंदर ही असस्टिेंट अकाउंटेंट और ऑडीटर के करीब 2500, जूनियर असस्टिेंट के करीब 5000 और ग्राम विकास अधिकारी के करीब 3500 पदों के साक्षात्कार पर रोक लगा दी। वहीं राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग इन पदों के लिए लिखित परीक्षा ले चुका है।
साक्षात्कार की तिथि घोषित कर दी गई थी, लेकिन आयोग के सचिव के मुताबिक इंटरव्यू को स्थगित कर दिया गया है। इसके साथ ही सरकार ने पिछली सरकार के कार्यकाल के अंतिम समय में हुईं भर्तियों पर रोक लगा दी है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल इलाहाबाद में हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में खुद प्रधानमंत्री ने कहा था कि आयोग में सिर्फ एक ही जाति के लोगों को लाभ पहुंचाने का काम किया जा रहा है। भर्तियां निष्पक्ष नहीं हो रही हैं। इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि योगी सरकार उप्र लोकसेवा आयोग की धांधली पर कड़ा फैसला ले सकती है।
भाजपा के एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकायत की कि आयोग में भर्तियों में धांधली की जा रही है। पिछली सरकार में एक जाति विशेष रूप से यादवों को ही लाभ पहुंचाया गया है। इसलिए आयोग द्वारा की गई सभी भर्तियों की जांच की जाय। सूत्रों ने बताया कि एमएलसी की शिकायत पर मुख्यमंत्री ने सोमवार को आयोग के अध्यक्ष डा. यादव को तलब किया था।
डा. यादव से लगभग एक घंटे की मुलाकात के बाद फिलहाल सरकार की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन एनेक्सी में मुख्यमंत्री से मुलाकात कर बाहर निकले डा. यादव से जब मीडिया ने सवाल पूछे तो उन्होंने किसी भी प्रश्न का जवाब नहीं दिया। उन्होंने इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया।
डा. यादव से यहां तक पूछा गया था कि क्या मुख्यमंत्री ने उन्हें हटाए जाने के बारे में उन्हें बता दिया गया है। वहीं सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने आशेग की धांधलियों के बारे में डा. यादव से सवाल-जवाब किए। कहा जा रहा है कि डा. यादव के जवाब से मुख्यमंत्री संतुष्ट नजर नहीं आए।
उल्लेखनीय है कि उप्र लोकसेवा आयोग अखिलेश सरकार के गठन के बाद से ही विवादों में रहा है। पहले पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति और योग्यता पर ही सवाल उठे और बाद में उन्हें हाई कोर्ट ने अयोग्य करार देकर हटा दिया था। उसके बाद सरकार ने बदायूं के गोविंद बल्लभ पंत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डा. अनिरुद्ध यादव को अध्यक्ष बना दिया था।
आयोग की निष्पक्षता पर तब सवाल उठे थे जब पीसीएस परीक्षा में 60 फीसदी से ज्यादा परीक्षार्थी एक ही जाति के चुने गए थे। इसके बाद से ही सरकार और आयोग के विरुद्ध विरोध मुखर हो गया था और हाई कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
अखिलेश सरकार की विवादित भर्तियां
कोर्ट के दखल के बाद दारोगा पद के लिए हुई 4 हजार 10 पदों पर भर्तियां धांधली के आरोप में लटक गईं। इनका रिजल्ट 16 मार्च 2015 को जारी हुआ था। इसके बाद आरोप लगे थे कि भर्ती में एक खास जाति को तरजीह दी गई है। वहीं, सिपाहियों की 34 हजार 716 भर्तियां भी लटक गई थीं। इसका रिजल्ट भी तैयार है, लेकिन भर्तियां नहीं हो रही हैं। कोर्ट ने सिपाही भर्ती की नई नियमावली में बदलाव किए हैं।
इसी तरह शिक्षक और प्रधानाचार्य की भी 9 हजार 270 पदों पर भर्तियां लटकी हैं। 5 साल में एक भी भर्ती नहीं हो पाई है, जबकि इसके लिए पांच बार विज्ञापन जारी हो चुका है। 5 बार आयोग के अध्यक्ष हटाए गए हैं। यही हाल सफाईकर्मियों की भर्ती में भी है, जहां 40 हजार भर्तियां लटकी हुई हैं।
विवादों की वजह से 3 बार भर्ती रद्द हो चुकी है। इसके अलावा अखिलेश सरकार के दौरान ही पीसीएस परीक्षा का पेपर भी 29 मार्च, 2015 को लीक हो गया था, जिसकी वजह से परीक्षा को रद्द कर दिया गया था। इस मामले में यूपी लोक सेवा आयोग की भूमिका पर सवाल उठे थे।