नई दिल्ली । देश के 24 हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के 478 पद रिक्त हैं और करीब 39 लाख मामले लंबित हैं। सरकार ने राज्यसभा को इस संबंध में सूचित किया है। दूसरी ओर न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले संबंधी कोलेजियम का फैसला लागू कराने में विफलता के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर नाराजगी जाहिर की है।
सरकार ने यह भी बताया है कि हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या जून 2014 में 906 थी। इस वर्ष जून में यह संख्या बढ़ाकर 1079 कर दी गई है। विधि मंत्रालय के मुताबिक, स्वीकृत पदों की संख्या बढ़ा दी गई है फिर भी 1 अगस्त को 24 हाई कोर्टों में 601 न्यायाधीश कार्यरत थे। इस लिहाज से न्यायाधीशों के 478 पदों को भरा जाना है। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या 31 है। शीर्ष अदालत में न्यायाधीश के तीन पद रिक्त हैं।
राज्यसभा में लिखित उत्तर में विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी ने बताया है कि विभिन्न हाई कोर्टों में लंबित मामलों की कुल संख्या में वृद्धि हुई और न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या बढ़ाई गई है। मंत्री ने लंबित मामलों की संख्या बढ़ते जाने के पीछे के कारण भी बताए। उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र के कानून, पहली अपील का अंबार, न्यायाधीशों के रिक्त पद, स्थगन आदि इसके कारण हैं।
उधर सुप्रीम कोर्ट में पीआइएल मुद्दे पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘कोलेजियम ने हाई कोर्ट के जजों के लिए 75 नामों (स्थानांतरण या नियुक्ति के लिए) को हरी झंडी दी थी। लेकिन अभी तक उसे स्वीकृति नहीं दी गई है। मैं नहीं जानता कि कहां और किस कारण से फाइल अटकी हुई है।’ इस पीठ में एएम खानवीलकर और डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे।