लखनऊ। केन्द्र सरकार जहां आयुष चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा दे रही है। वहीं उत्तर प्रदेश में उत्तम चिकित्सा सुविधाओं का दंभ भरने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति एकदम उदासीन हैं। सूबे की 600 डिस्पेंसरी बगैर चिकित्सक के चल रही है।
अखिलेश सरकार ने जहां सूबे में एलोपैथ के दर्जनों अस्पताल और कई मेडिकल कालेज खोले लेकिन विगत चार वर्ष के कार्यकाल में होम्योपैथ की एक भी डिस्पेंसर नहीं खुली है। उत्तर प्रदेश में एक हजार होम्योपैथिक चिकित्सकों के सहारे सूबे की 1600 डिस्पेंसरी हैं। ऐसे में कई स्थानों पर दो डिस्पेंसरी की जिम्मेदारी एक ही चिकित्सक के पास है। यही नहीं सूबे में चिकित्सकों के साथ.साथ फार्मासिस्टों की भी भारी कमी है। गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश आधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के माध्यम से होम्योपैथी विभाग में 346 फार्मासिस्टों का चयन होना था। अभ्यर्थियों के चयन में तीन महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है। इसके बावजूद इन चयनित फार्मासिस्टों का सत्यापन होम्योपैथी विभाग द्वारा पूरा नहीं कराया गया। सूत्रों की मानें तो फार्मासिस्टों की नियुक्ति में आरक्षण का पेंच फंसा हुआ है। नये नियम के मुताबिक प्रत्येक डिस्पेंसरी में तीन पद सृजित किये गये हैं। इनमें एक डाक्टर एकएएक कंपाउंडर और एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी शामिल हैं। वहीं इन होम्योपैथ डिस्पेंसरियों की हालत भी दयनीय है। अधिकांश डिस्पेंसरी किराये के भवनों में हैं। इनमें से अधिकांश में बिजली और फर्नीचर की भी व्यवस्था नहीं है। प्रान्तीय होम्योपैथिक चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष डाण् वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि हमारे विभाग में चिकित्सकों के साथ.साथ फार्मासिस्टों की भी भारी कमी है। 2011 से डाक्टरों की नियुक्ति नहीं हुई है। प्रतिदिन दो.चार होम्योपैथिक चिकित्सक रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि लोकसेवा आयोग को पत्र लिखकर चिकित्सकों की भर्ती शुरू कराये।उत्तर प्रदेश में 1510 सरकारी डिस्पेंसरी हैं। इन अस्पतालों के लिए 1610 होम्योपैथ चिकित्सकों के पद सृजित हैं। मौजूदा समय में लगभग एक हजार चिकित्सक कार्यरत हैं।