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आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर

तिरुपति लड्डू प्रसादम विवाद: सुप्रीम कोर्ट में याचिका और श्री श्री रविशंकर का सख्त बयान

लखनऊ। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम में कथित रूप से पशु चर्बी के उपयोग के मामले ने देशभर में हंगामा मचा दिया है। इस मुद्दे पर एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।


सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर
तिरुपति लड्डू प्रसादम में पशु चर्बी के उपयोग को लेकर हिंदू सेना के अध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि तिरुपति मंदिर में भक्तों को घी के बजाय पशु चर्बी से बने लड्डू दिए गए, जो हिंदू धर्म के खिलाफ है और भक्तों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है। याचिका में विशेष जांच दल (SIT) द्वारा इस पूरे मामले की गहन जांच की मांग की गई है।

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याचिकाकर्ता का कहना है कि इस मुद्दे ने हिंदू समुदाय की आत्मा को झकझोर दिया है और यह भक्तों की आस्था पर सीधा हमला है। याचिका में यह भी कहा गया है कि कई भक्त न्याय पाने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए न्यायालय से हस्तक्षेप की अपील की गई है। अब इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का इंतजार है।


श्री श्री रविशंकर का बयान: सख्त सजा की मांग
आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने भी इस मामले पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि यह घटना हिंदू धर्म की आस्थाओं के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है। उन्होंने कहा, “यह दुर्भावनापूर्ण कार्य है और इसमें शामिल लोगों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उनकी संपत्ति जब्त कर उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए।”
श्री श्री रविशंकर ने बाज़ार में उपलब्ध अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट की भी जांच की मांग की है। उनका कहना है कि ऐसे सभी उत्पादों की जांच होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे शाकाहारी होने का दावा करते हुए मांसाहारी सामग्री तो नहीं मिला रहे हैं।

मंदिर प्रबंधन में सुधार की मांग
श्री श्री रविशंकर ने मंदिर प्रबंधन के लिए एक आध्यात्मिक गुरुओं की समिति गठित करने की भी सलाह दी है। उन्होंने कहा कि मंदिरों के प्रबंधन की जिम्मेदारी संतों और स्वामियों के हाथों में होनी चाहिए, ताकि धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण हो सके। सरकार की भूमिका केवल पर्यवेक्षण तक सीमित रहनी चाहिए और प्रमुख निर्णय धार्मिक बोर्डों द्वारा ही लिए जाने चाहिए।

यह विवाद न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहा है, बल्कि भक्तों की आस्था और विश्वास को भी गंभीर रूप से चुनौती दे रहा है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या निर्णय लेता है और क्या कोई समाधान निकलता है।

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