लखनऊ। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है। पाली, जो बौद्ध धर्म की प्रमुख भाषा रही है, को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इसकी साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता को व्यापक मान्यता मिली है।
इस फैसले के साथ पाली को अन्य चार भाषाओं – मराठी, असमिया, बांग्ला, और प्राकृत – के साथ इस श्रेणी में शामिल किया गया है। यह निर्णय भारत की भाषाई धरोहर को संजोने और संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
*पाली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि*
पाली भाषा की जड़ें प्राचीन भारत में बौद्ध और जैन परंपराओं से जुड़ी हैं। भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश पाली में दिए, जिससे यह भाषा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का महत्वपूर्ण माध्यम बन गई।
बौद्ध ग्रंथों, विशेषकर त्रिपिटक, को पाली भाषा में संरक्षित किया गया, जो बुद्ध के उपदेशों और धार्मिक सिद्धांतों का संग्रह है। पाली का सबसे पहला उल्लेख बुद्धघोष की टीकाओं में मिलता है, जबकि इसकी उत्पत्ति के संदर्भ में कई विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कुछ इसे मगधी भाषा से जुड़ा मानते हैं, जबकि अन्य इसे आम जन की भाषा बताते हैं।
पाली का अध्ययन प्राचीन भारत के इतिहास, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। बौद्ध धर्म के साथ पाली का प्रचार भारत से बाहर भी हुआ और आज यह भाषा श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, चीन, जापान, तिब्बत और अन्य बौद्ध बहुल देशों में व्यापक रूप से पढ़ाई जाती है। पाली भाषा की महत्ता उसके समृद्ध साहित्यिक योगदान और प्राचीन भारतीय ज्ञान को संरक्षित करने में निहित है।
*पाली साहित्य का योगदान*
पाली भाषा में रचित साहित्य बौद्ध धर्म की धार्मिक धरोहर को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पाली का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ त्रिपिटक है, जो तीन खंडों में विभाजित है।
पहला खंड, विनय पिटक, भिक्षुओं के लिए धार्मिक नियमों और नैतिक आचरण को निर्धारित करता है।
दूसरा खंड, सुत्त पिटक, भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है।
जबकि तीसरा खंड, अभिधम्म पिटक, मन और ज्ञान के गहन विश्लेषण से संबंधित है।
पाली साहित्य में जातक कथाएं भी शामिल हैं, जो भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियों को प्रस्तुत करती हैं। ये कहानियां भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और उनमें नैतिकता, धर्म और समाज के मूलभूत सिद्धांतों को वर्णित किया गया है।
पाली भाषा के माध्यम से बौद्ध धर्म की शिक्षाएं जन-जन तक पहुंची और इससे जुड़ा साहित्य भारत के प्राचीन धार्मिक और दार्शनिक विचारों को आज भी संजोए हुए है।
*शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने का महत्व*
पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इस प्राचीन भाषा के पुनरुत्थान के प्रयासों को नई दिशा मिलेगी। यह मान्यता पाली के समृद्ध साहित्यिक योगदान को संरक्षित करने और इसके अध्ययन को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगी।
इसके तहत सरकार विभिन्न योजनाओं को लागू कर इस भाषा के शोध, अध्ययन और प्रचार को प्रोत्साहित करेगी। इसके माध्यम से पाली भाषा के महत्व को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पुनर्स्थापित किया जाएगा।