” भारत में दिवाली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में इसे नहीं मनाने का रिवाज है। जानें महाबली और नरक चतुर्दशी से जुड़े इन क्षेत्रों की विशेष परंपराएं और कारण।”
लखनऊ। भारत में दिवाली का पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में इसे नहीं मनाने की परंपरा है। केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में दिवाली का मुख्य त्यौहार नहीं मनाया जाता। इसके पीछे पौराणिक और सांस्कृतिक कारण जुड़े हुए हैं। केरल के अधिकतर क्षेत्रों में दिवाली का कोई खास महत्व नहीं है, जबकि तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में नरक चतुर्दशी को दिवाली के स्थान पर मनाने का रिवाज है।
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केरल में दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती?
केरल के लोग ओणम को बड़े धूमधाम से मनाते हैं, जो वहां का मुख्य पर्व है। मान्यता है कि केरल के राजा महाबली की मृत्यु दिवाली के दिन हुई थी, इसी कारण से इस दिन को वहाँ खास उल्लास के साथ नहीं मनाया जाता। हालांकि, केरल के कोच्चि शहर में कुछ स्थानों पर दिवाली मनाई जाती है, जहाँ कई अन्य राज्यों से आकर बसे लोगों की वजह से दिवाली का चलन देखने को मिलता है।
तमिलनाडु में दिवाली के बजाय नरक चतुर्दशी:
तमिलनाडु के कई हिस्सों में दिवाली का उत्सव नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग विशेष पूजा, तेल स्नान और दीपदान के साथ उत्सव मनाते हैं। इस पर्व को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा असुर नरकासुर का वध करने की मान्यता से जोड़ा जाता है। तमिलनाडु के कुछ लोग इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाते हैं, जबकि अमावस्या की रात को दिवाली नहीं मनाते हैं।
भारत में विविधता और त्यौहारों का महत्व:
भारत की सांस्कृतिक विविधता के कारण देश में हर राज्य की त्यौहार मनाने की परंपराएं और रीति-रिवाज अलग हैं। दिवाली का महत्व भले ही पूरे देश में हो, लेकिन केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में यह पर्व पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार नहीं मनाया जाता है। यह अनोखा परंपरागत भिन्नता भारतीय संस्कृति की बहुलता का प्रतीक है।
- केरल में ओणम महोत्सव अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो वहां की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
- तमिलनाडु में नरक चतुर्दशी को पारंपरिक आयुर्वेदिक स्नान का भी विशेष महत्व है।
कोच्चि में दिवाली का आयोजन अन्य राज्यों के लोगों द्वारा अधिक किया जाता है, जहाँ अन्य स्थानों के लोग आकर बसे हैं।
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रिपोर्ट -मनोज शुक्ल