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प्रदूषण पर लापरवाही का सवाल

सुप्रीम कोर्ट: महिला कैदियों की रिहाई के लिए जेल अधीक्षकों मिले निर्देश, जानें…

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर 2024 और 19 नवंबर 2024 को दो महत्वपूर्ण आदेशों में जेल अधीक्षकों को महिलाओं, जो विचाराधीन कैदी हैं, उनके मामलों की प्राथमिकता के आधार पर रिहाई के लिए सक्रिय कदम उठाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि बीएनएसएस की धारा 479 के तहत सभी पात्र व्यक्तियों को तत्काल लाभ दिया जाए, जिससे जेल में बढ़ती भीड़ को कम किया जा सके।

महिला कैदियों की रिहाई के लिए विशेष प्रयास
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 479 का लाभ महिलाओं के लिए समान रूप से लागू है, लेकिन जेल अधिकारियों को महिला कैदियों की पहचान करने और उन्हें प्राथमिकता देने के लिए विशेष प्रयास करने का निर्देश दिया गया। इसके तहत विचाराधीन महिलाओं की रिहाई के लिए सक्रिय कदम उठाए जाएंगे, विशेष रूप से उन मामलों में जिनकी सुनवाई लंबित है।

धारा 479 का पिछली तिथि से लाभ
कोर्ट ने आदेश दिया कि धारा 479 का लाभ 1 जुलाई 2024 से पहले दर्ज मामलों में विचाराधीन कैदियों पर पिछली तिथि से लागू होगा। यह प्रावधान जेल में वर्षों से बंद कैदियों को राहत देगा जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है। इससे जेलों में भीड़ कम करने में मदद मिलेगी।

रिहाई के पात्र कैदी
धारा 479 के तहत, वे कैदी जिनकी सजा का आधा या एक तिहाई समय पूरा हो चुका है, वे रिहाई के पात्र होंगे। विशेष रूप से पहले बार अपराध करने वाले और गंभीर अपराधों के आरोपित, जिन्हें बाद में कम आरोपों का सामना करना पड़ा, उनकी पहचान और रिहाई की प्रक्रिया को तीव्र गति से पूरा किया जाएगा।

राज्यों की लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देशित किया कि वे धारा 479 के अनुपालन में कोई लापरवाही न दिखाएं। उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और गोवा जैसे राज्यों ने इस आदेश को प्रभावी रूप से लागू नहीं किया था, जिस पर कोर्ट ने कड़ी आलोचना की।

रिहाई प्रक्रिया और जेल में भीड़
जेल अधीक्षकों को अब यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए अदालत को तुरंत सूचित करें। इससे जेलों में कैदियों की भीड़ को कम करने में मदद मिलेगी और लंबे समय से बंद कैदी राहत महसूस करेंगे।

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