“सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में 1976 में किए गए 42वें संशोधन के तहत “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को शामिल करने की चुनौती देने वाली याचिका खारिज की। कोर्ट ने इस मुद्दे को लेकर याचिकाकर्ताओं के आग्रह को भी अस्वीकार कर दिया।”
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और संविधान की प्रस्तावना में 1976 के 42वें संशोधन के द्वारा “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को शामिल करने के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संसद की संशोधन शक्ति संविधान की प्रस्तावना तक भी फैली हुई है, और प्रस्तावना को अपनाने की तारीख से संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के आग्रह को भी खारिज किया, जो इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने की मांग कर रहे थे। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, “लगभग इतने साल हो गए हैं, अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है?”
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42वें संविधान संशोधन के तहत, “समाजवादी”, “धर्मनिरपेक्ष” और “गणराज्य” शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया था, और यह बदलाव भारतीय राजनीति और समाज के लोकतांत्रिक ढांचे को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण माना जाता है। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि संविधान की प्रस्तावना में संशोधन को लेकर किसी प्रकार की वैधानिक चुनौती अब स्वीकार नहीं की जाएगी।