“ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाला ऐतिहासिक कानून पारित किया है। इस कानून का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है। जानिए, क्या भारत भी ऐसा कदम उठा सकता है और दुनियाभर में सोशल मीडिया पर कैसे लगाम लगाई जा रही है।”
मनोज शुक्ल
29 नवंबर 2024 को ऑस्ट्रेलिया ने ‘सोशल मीडिया मिनिमम एज बिल’ पास कर बच्चों के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर रोक लगाने का ऐतिहासिक कदम उठाया। यह कानून 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने पर केंद्रित है, ताकि डिजिटल खतरों से बचाव और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार किया जा सके।
यह कदम भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां सोशल मीडिया का बच्चों पर व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है।
भारत में बच्चों पर सोशल मीडिया का प्रभाव
रेडसीयर की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय यूजर्स औसतन 7.3 घंटे स्मार्टफोन पर बिताते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में बच्चे शामिल हैं। एनसीआरबी (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट में पाया गया कि 1,70,924 बच्चों ने आत्महत्या की, जिनमें कई मामलों का संबंध सोशल मीडिया प्रेरित घटनाओं से था।
प्रमुख घटनाएं:
- इटावा, उत्तर प्रदेश (2024): रेलवे ट्रैक पर रील बनाते हुए दो दोस्तों की मौत।
- औरंगाबाद, महाराष्ट्र (2024): कार में रील बनाते वक्त एक लड़की की खाई में गिरकर मौत।
- ब्लू व्हेल चैलेंज (2021): सोशल मीडिया पर इस घातक चैलेंज के कारण कई बच्चों ने आत्महत्या की।
सोशल मीडिया के कारण बच्चों में साइबरबुलिंग, फर्जी प्रोफाइल, धोखाधड़ी और हिंसक प्रवृत्तियों का विकास हो रहा है।
ऑस्ट्रेलिया के कानून से भारत क्या सीख सकता है?
ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने से रोकने के लिए सख्त प्रावधान किए हैं। भारत में भी ऐसा कदम उठाने की जरूरत महसूस हो रही है।
भारत में मौजूदा कानून:
- आईटी एक्ट (2000): साइबर सुरक्षा को लेकर बनाए गए प्रावधान।
- आईटी एक्ट संशोधन (2008): ऑनलाइन कंटेंट मॉनिटरिंग और ऐप्स पर नियंत्रण।
- टिकटॉक बैन (2020): बच्चों पर बुरे प्रभावों को रोकने के लिए।
हालांकि, बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर सीधा प्रतिबंध लगाने वाला कोई कानून नहीं है।
भारत में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध की चुनौतियां
तकनीकी बाधाएं:
- बायोमेट्रिक और डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन की तकनीक को लागू करना जटिल होगा।
- डेटा प्राइवेसी को लेकर चिंताएं।
सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याएं:
- सोशल मीडिया भारत में मनोरंजन और शिक्षा का बड़ा माध्यम है।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जागरूकता की कमी।
कानूनी विरोध:
- सोशल मीडिया कंपनियों के हित प्रभावित होंगे।
- ऑनलाइन प्राइवेसी और स्वतंत्रता का सवाल उठेगा।
क्या भारत को ऑस्ट्रेलिया का मॉडल अपनाना चाहिए?
पक्ष में:
- बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार।
- ऑनलाइन अपराध और खतरों पर नियंत्रण।
- सोशल मीडिया की लत से छुटकारा।
विरोध में:
- डिजिटल शिक्षा और कनेक्टिविटी प्रभावित हो सकती है।
- कानून लागू करने की तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियां।
दुनिया के अन्य देशों का दृष्टिकोण
फ्रांस: 15 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया उपयोग के लिए माता-पिता की अनुमति अनिवार्य।
नॉर्वे: 13-15 साल तक के बच्चों के सोशल मीडिया पर प्रतिबंध।
जर्मनी और इटली: 13-16 साल के बच्चों के लिए माता-पिता की अनुमति जरूरी।
भारत में तेजी से बढ़ते डिजिटल उपयोग के बीच बच्चों की सुरक्षा के लिए सोशल मीडिया पर नियंत्रण की आवश्यकता है। ऑस्ट्रेलिया का ‘सोशल मीडिया मिनिमम एज बिल’ भारत के लिए प्रेरणा हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए भारत को अपनी सांस्कृतिक और तकनीकी जरूरतों के अनुसार एक संतुलित और व्यावहारिक समाधान तैयार करना होगा।
अगर यह कदम उठाया गया, तो यह न केवल बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि उन्हें एक स्वस्थ डिजिटल और सामाजिक जीवन जीने का अवसर भी देगा।
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