लखनऊ। ठाकुरगंज थाना क्षेत्र में एक पत्रकार पर हुए हमले के बाद पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। ठाकुरगंज थाना प्रभारी पत्रकार से जुड़े कॉल्स को नजरअंदाज करने के आरोपों में घिर गए हैं। मामला रविवार रात का है, जब एक स्थानीय पत्रकार पर हमला हुआ और इसकी रिपोर्ट पुलिस में दर्ज की गई। हालांकि, 24 घंटे बीत जाने के बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
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सोमवार को जब एक अन्य पत्रकार ने इस केस की जानकारी लेने के लिए थाना प्रभारी को कॉल किया, तो उन्होंने फोन उठाना तक मुनासिब नहीं समझा। इससे न सिर्फ पत्रकार जगत में नाराजगी है, बल्कि यह भी सवाल उठ खड़ा हुआ है कि सूचना के आदान-प्रदान में अगर चूक होती है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी – पत्रकार की, थाना प्रभारी की या डीसीपी की?
पत्रकारों का कहना है कि अक्सर उन्हें ground से अपडेट देने के लिए पुलिस से समन्वय करना पड़ता है। लेकिन जब थाना स्तर पर संवाद ही ठप हो जाए तो जिम्मेदार रिपोर्टिंग कैसे संभव हो पाएगी? इस प्रकार की घटनाएं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करती हैं।
सूत्रों के मुताबिक, पीड़ित पत्रकार के मामले में धारा 323, 504 और 506 के तहत केस दर्ज किया गया है, लेकिन नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी अब तक नहीं हो पाई है। जब इस बारे में पूछने के लिए फोन किया गया, तो ठाकुरगंज थाना प्रभारी ने कॉल रिसीव नहीं किया।
पत्रकार संघों ने प्रशासन से इस व्यवहार पर आपत्ति जताई है और पारदर्शिता की मांग की है। यदि पत्रकारों और पुलिस के बीच संवादहीनता बनी रहती है, तो भविष्य में जनहित की खबरों पर भी असर पड़ सकता है।
अब निगाहें डीसीपी पश्चिम पर टिकी हैं कि वह इस प्रकरण को कैसे सुलझाते हैं और क्या पत्रकारों की बात सुनी जाती है या फिर मामला यूं ही ठंडे बस्ते में चला जाएगा।