भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की महत्वाकांक्षाएं लगातार आगे बढ़ रही हैं। ISRO Chandrayaan-4 मिशन को लेकर इसरो ने तैयारी तेज कर दी है। संगठन 2028 में चंद्रयान-4 भेजने की योजना पर तेजी से काम कर रहा है। इसके साथ ही अंतरिक्ष यान निर्माण क्षमता को भी आने वाले तीन वर्षों में तीन गुना करने की दिशा में प्रयास बढ़ाए गए हैं।
इसरो प्रमुख वी. नारायणन ने कोलकाता में बताया कि अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की प्रगति लगातार तेज हो रही है। उन्होंने कहा कि ISRO Chandrayaan-4 मिशन को सरकार की मंजूरी मिल चुकी है और यह भारत का पहला ‘लूनर सैंपल रिटर्न’ मिशन होगा।
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इस मिशन के तहत चंद्रमा की सतह से नमूने लाकर धरती पर भेजे जाएंगे। अब तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ने ही यह क्षमता दिखाई है। इसी के साथ इसरो जाक्सा के साथ संयुक्त मिशन लूपेक्स पर भी काम कर रहा है, जो चंद्र दक्षिणी ध्रुव पर जल-बर्फ की मौजूदगी का अध्ययन करेगा। यह मिशन वैज्ञानिक अनुसंधान को नई दिशा देगा।
इसरो प्रमुख ने यह भी बताया कि संगठन इस वित्त वर्ष में सात और प्रक्षेपण करेगा। इनमें एक वाणिज्यिक संचार उपग्रह, कई पीएसएलवी और जीएसएलवी मिशन शामिल हैं। खास बात यह है कि इस दौरान पहला स्वदेशी पीएसएलवी भी प्रक्षेपित किया जाएगा, जिससे निजी सेक्टर की भागीदारी नए चरण में प्रवेश करेगी। गगनयान मिशन को लेकर नारायणन ने कहा कि मानवयुक्त उड़ान 2027 में ही होगी, जबकि मानवरहित परीक्षणों की टाइमलाइन में बदलाव किया गया है।

इसरो 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसका पहला मॉड्यूल 2028 में कक्षा में भेजा जाएगा। अंतरिक्ष-क्षेत्र में सुधारों के बाद निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ गई है। आज 450 से अधिक उद्योग और 330 से ज्यादा स्टार्टअप इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। भारत का स्पेस इकोनॉमी बाजार 8.2 अरब डॉलर का है, जिसे 2030 तक 8% वैश्विक हिस्सेदारी तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
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