लखनऊ। पिछले माह गोपनीय रूप से हुई वरुण गांधी और प्रियंका गांधी की लंबी मुलाकात के बाद राजनीतिक हलकों में उन्हें लेकर अनेक तरह की चर्चाएं और अफवाहें चल रही हैं। वरुण ने जिस तरह नेहरू की तारीफ की है और भाजपा की केंद्र और कई राज्यों की सरकार पर सीधे निशाने साधे, उससे उनके बारे में चल रही चर्चाओं और अफवाहों को बल मिला है। वरुण के इस नए अवतार से सवाल खड़ा हुआ है कि यह दबाव की राजनीति का नमूना है या बिछुड़े गांधी परिवार के एक होने की छटपटाहट?वण और उनकी ‘माता श्री’ , दोनों ही इस समय भाजपा में कम्फर्टेबल नहीं हैं, यह जगजाहिर है। मेनका का सोनिया से गांधी परिवार का सदस्य बनने के समय से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। सोनिया की हठधर्मी की वजह से मेनका की गांधी परिवार से राहें जुदा हुईं। अब प्रियंका बिछुड़ों को एक करने की कोशिशों में जुटी हैं।
एक कार्यक्रम में बोलते हुए वरुण गांधी ने नेहरू को लेकर कहा, ‘लोग कहते हैं कि नेहरू धनी परिवार से थे, राजा की तरह जिए और पीएम बन गए। लोग यह भूल जाते हैं कि नेहरू 15 साल जेल में रहे।’ वरुण ने आगे कहा, ‘कोई मुझसे कहे कि 15 साल जेल में रहो, पद दे दूंगा तो मैं कहूंगा कि भैया माफ कर दो।’वरुण राजनीति में आने के समय से ही अनाप-शनाप और विवादित बयान देते रहे हैं। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि वह नेहरू के समर्थन में बोले हैं। उन्होंने भाजपा की केंद्र से लेकर राज्य की सरकारों पर जमकर वार किए। उन्होंने केंद्र की किसान, श्रम और विदेश नीति को कठघरे में खडा करते हुए जमकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि केरल के किसान केटी जोसेफ को तीन हजार का कर्ज न चुकाने पर तीन माह की जेल हो जाती है और 4500 करोड़ का कर्ज होने के बावजूद माल्या देश छोड़कर भाग जाने में कामयाब हो जाते हैं। क्या यही हमारी व्यवस्था है?’वरुण यहीं नहीं रुके। बिना नाम लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ की सरकार की नक्सल नीति को जमकर आड़े हाथ लिया। राजस्थान सरकार पर निशाना साधते हुए वरुण ने कहा, ‘सरकार प्रदेश के एक बड़े अखबार को केवल इसलिए विज्ञापन नहीं दे रही है क्योंकि वह अखबार उनकी सरकार के घोटालों को अखबार में छापता है।’वरुण और मेनका के असंतोष को देखते हुए पीएम मोदी ने मेनका गांधी को अपने आवास पर बुलाया था। वहां क्या बात हुई, यह तो सार्वजनिक नहीं हुआ लेकिन इससे यह संकेत जरूर मिला कि मेनका-वरुण और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। अब वरुण के नेहरू की तारीफ करने और अपनी ही सरकारों की आलोचना करने को वरुण मेनका की मुलाकात से जोड़कर देखा जा रहा है। इस मुलाकात के बाद यह बात तेजी से फैली थी कि वरुण कांग्रेस में जा सकते हैं। तब इसे कोरी अफवाह माना गया था। सांसद होने के बावजूद वरुण गांधी अपनी पार्टी में पूरी तरह हाशिए पर हैं। यह आने वाला वक्त ही बताएगा कि वरुण के इन तेवरों का क्या राजनीतिक निहितार्थ है, लेकिन पूरे गांधी परिवार की एकजुटता के प्रयासों की चर्चाएं फिर से तेज हो गई हैं।