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दरवाज़ा खोलें या रोशनदान, उनका तो बस पाकिस्तान

download (8)दरवाजा खोलिए या रोशनदान, अगर दिल में देश के लिए सम्मान का भाव नहीं है और पड़ोसी मुल्क से अलगाववादियों की साठ-गांठ है तो वार्ता की बयार तो बहने से रही। इसमें शक नहीं कि संवाद ही केसी भी समस्या का स्थायी समाधान है लेकिन अगर अलगाववादी वार्ता की मेज पर आते ही नहीं तो उनके लिए खिड़की, दरवाजे और रोशनदान खोलने का कोई मतलब नहीं है। पहली बात तो यह है कि जिस दृढ़ता के साथ केंद्र सरकार अपनों से, खासकर कश्मीर घाटी की अमनपसंद जनता से बात करने की पक्षधर है, वह दृढ़ता बार-बार डिग कैसे जाती है। अलगाववादी ताकतों से बात करने से केंद्र सरकार को हमेशा गुरेज रहा है क्योंकि कश्मीर समस्या के पलीते में  चिनगारी भड़काने का काम तो अंतत: उन्हीं का किया हुआ है। आग बढ़ाने वालों को ही आग बुझाने के लिए बुलाना कितना तर्कसंगत और वाजिब है? यह भी तो समझे जाने की जरूरत है। फिर अलगाववादी तो अमनपसंद नहीं हैं, यह सब जानते-समझते हुए भी उन्हें वार्ता की मेज पर बुलाने का नेता किसी सामान्य व्यक्ति की समझ से परे है। नीति ग्रंथ कहते हैं कि सठे साठ्यं समाचरेत्। दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार ही किया जाना चाहिए। सांप को दूध पिलाओ तो उसका विष बढ़ता है। 

अलगाववादी दरअसल पाकिस्तान से पालित और शासित हैं, ऐसे लोगों से देश हित में सोचने की उम्मीद करना भी व्यर्थ है।  अगर वे भारत के इतने ही हमदर्द होते तो आज कश्मीर घाटी के इतने बदतर हालात न होते। कश्मीर घाटी उबल रही है। उत्तेजित युवकों की पत्थरबाजी और कश्मीर बंद की घोषणा  घाटी की सेहत पर प्रतिकूल असर डाला है।  59 दिनों से वहां निषेधाज्ञा लागू है। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी घाटी में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। सरकार ने घाटी में संवाद स्थापित करने की पुरजोर कोशिश की है लेकिन अलगाववादी ताकतें राज्य और केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल से बात ही नहीं करना चाहते।

पृथकतावादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस ने साफ तौर पर कह दिया है कि भारत पहले पाकिस्तान से बात करे। इसके बाद ही हुर्रियत नेता केंद्र सरकार के नेताओं से बात करेंगे। भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि अब पाकिस्तान से कोई बात नहीं होगी और अगर वार्ता होगी भी तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर। इसके बाद भी हुर्रियत नेता अगर केंद्र सरकार पर पाकिस्तान से बात करने का दबाव दे रहे हैं तो इससे साफ है कि उनका कश्मीर से कहीं ज्यादा सरोकार पाकिस्तान से है। वे पाकिस्तान के हित संवर्द्धन में जुटे हुए हैं। उसके इशारे पर ही वे कश्मीर घाटी में विधि-व्यवस्था की स्थापना नहीं होने दे रहे हैं। गौरतलब है कि पाकिस्तान में केवल 5 प्रतिशत अलगाववादी है जो 95 प्रतिशत कश्मीरी अवाम पर भारी पड़ रहे हैं।

हुर्रियत नेताओं के  अड़ियल रवैये को देखते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी वाजिब ही है कि  अलगाववादी नेताओं के  दिल में कश्मीरी वाम के लिए न तो इंसानियत है और न ही कश्मीरियत। यह बहुत ही तल्ख टिप्पणी है। राजनाथ सिंह ने तो यहां तक कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार घाटी में शांति का माहौल तैयार करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है। बातचीत के लिए हमारे दरवाजे ही नहीं, रोशनदान भी खुले हैं। विपक्ष के वे सदस्य जो अभी तक कश्मीर समस्या के लिए  केंद्र सरकार की कथित संवादहीनता को जिम्मेदार मानते थे, आज वे भी केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य हैं और अलगाववादियों का रवैया देख रहे हैं। इसके बाद भी सीताराम येचुरी सरीखे लोग केंद्र सरकार से संवाद बनाए रखने की अपील कर रहे हैं। मतलब एक हाथ से ताली बजाते रहो और महसूस करो कि ध्वनि जरूर निकलेगी। राजनाथ सिंह की दरवाजे और रोशनदान खुले रखने की घोषणा विपक्षी दलों की बोलती बंद करने के लिए काफी है।  गृहमंत्री की इस राय का पूरे देश में स्वागत किया जाना चाहिए कि कश्मीर भारत का अभि‍न्न अंग था, है और रहेगा।  भारत वार्ता के लिए आगे बढ़ रहा है और उसकी ओर से पहले ही यह बात साफ कर दी गई थी कि वह पहले अपने देशवासियों से बात करेगा फिर पाकिस्तान अथवा किसी भी देश से बात करने के बारे में यथायोग्य सोचेगा। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल रविवार को श्रीनगर पहुंचा था। आज वहां उसका आखिरी दिन है।

केंद्रीय गृहमंत्री  राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती के साथ बैठक की। हुर्रियत नेताओं के बातचीत से इनकार के बाद प्रतिनिधिमंडल जम्मू जाएगा और कश्मीरी पंडितों के साथ ही व्यापारी समूहों से हालात पर चर्चा करेगा।  प्रतिनिधि‍मंडल ने अब तक 300 लोगों से बात की है। सब चाहते हैं कि कश्मीर के हालात सुधरें। राजनाथ सिंह ने कहा कि पैलेट गन पर बनी समिति ने पावा शेल का विकल्प सुझाया है और उम्मीद है अब इससे किसी को नुकसान नहीं होगा। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ढुलमुल नीति का ही नतीजा है कि भारत के पास केवल आधा कश्मीर है। संयुक्त राष्ट्रसंघ में कश्मीर मसले को ले जाकर दरअसल नेहरू ने तत्कालीन बड़ी भूल की थी जिसकी सजा भारतीय कश्मीर आज तक भुगत रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान का राग छेड़कर पाकिस्तान के जले पर नमक छिड़क दिया है, केंद्र सरकार को कुछ ऐसा ही प्रयोग कश्मीरी अलगाववादियों के साथ भी करना होगा, तभी कश्मीर समस्या का समाधान हो सकेगा।

                                                                                                                                                                             ——- सियाराम पांडेय ‘शांत’

 

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