शिमला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंडी में विद्युत परियोजनाओं के उद्घाटन किया । इस अवसर पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने प्रधानमंत्री को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा। साथ ही हिमाचल सरकार ने प्रधानमंत्री से यह 12 चीजें भी मांगी हैं।
1. प्रदेश को हरित आवरण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने तथा पर्वतीय राज्यों में वनों के संरक्षण के लिए बहुमूल्य पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रदेश को प्रति वर्ष कम से कम 1000 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति अनुदान प्रदान करना। प्रदेश सरकार के इन प्रयासों से समूचे भारत को व्यापक लाभ पहुंचा है, हालांकि इससे प्रदेश के लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है।
2. प्रदेश केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत क्षेत्र में वन क्षेत्र होने की शर्त को पूरा करता है तथा प्रदेश में 66.5 प्रतिशत क्षेत्र को वन परिक्षेत्र वर्गीकृत किया गया है। ऐसे में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को प्रदेश के केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में लम्बित जल विद्युत परियोजनाओं के त्वरित स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिए, क्योंकि हिमाचल प्रदेश पहले ही भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानदण्डों को पूरा करता है।
3. पर्वतीय राज्यों को सड़क निर्माण, पेयजल तथा जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिये वन भूमि के हस्तांतरण की सीमा को मौजूदा एक हेक्टेयर से बढ़ाकर 10 हेक्टेयर करने की शक्ति प्रदान करने का आग्रह।
4. शिमला देश के बहुत कम राज्यों की राजधानियों में हैं, जहां कोई भी हवाई सुविधा नहीं है। शिमला हवाई अड्डे की अधोसंरचनात्मक सुविधाओं का भी स्त्तरोन्यन किया गया है। माननीय प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया है कि वह केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय तथा अन्य संबंधित संगठनों को शिमला हवाई अड्डे से व्यावसायिक हवाई सुविधाएं बहाल करने के निर्देश जारी करें।
5. सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा अतिरिक्त भूमि को इंजीनियरिंग कॉलेज कोटला (ज्यूरी) के उपयोग के लिये प्रदेश को हस्तांतरित की जाए। यह भूमि राज्य सरकार द्वारा 1980 के दशक में सतलुज जल विद्युत निगम को कार्यालय एवं आवासीय कॉलोनियों के निर्माण के लिए दी गई थी तथा वर्तमान में यह सरपल्स है। ज्यूरी अथवा कोटला स्थित इस परियोजना की भूमि का कोई भी उपयोग नहीं हो रहा है।
6. वर्तमान में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के प्रबंधन में पंजाब तथा हरियाणा दो ही राज्य हैं, क्योंकि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड की परियाजनाएं हिमाचल प्रदेश राज्य की प्रादेशिक अधिकार क्षेत्र में आती है। यह हिमाचल प्रदेश का कानूनी अधिकार है कि उसे प्रबंधन में पूर्ण कालीन सदस्य के रूप में प्रतिनिधित्व दिया जाए, क्योंकि भाखड़ा परियोजना के कारण प्रदेश की 103425 एकड़ उपजाऊ भूमि तथा ब्यास परियाजनाओं (डैहर तथा पौंग) के कारण 65563 एकड़ भूमि के जलगमन होने के कारण हिमाचल प्रदेश को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
7. भाखड़ा नंगल समझौता 1959 तथा 31.12.1998 के अंतरराजीय समझौते के अनुसार हिमाचल प्रदेश को सतलुज तथा रावी व ब्यास से पानी का कोई आबंटन नहीं किया गया है। सतलुज, ब्यास तथा रावी नदियों से हिमाचल प्रदेश के जल उपयोग अधिकारों को देखते हुए, हिमाचल प्रदेश के लिए भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड/मंत्रालयों/विभागों से जलापूर्ति योजनाओं तथा परियोजना से लगते प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की जलापूर्ति के लिये अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। प्रधानमंत्री को अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने की शर्त को समाप्त करने का आग्रह किया गया।
8. राज्य ने पंजाब तथा हरियाणा राज्यों के विरूद्ध बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन में 3957 करोड़ रुपये के विद्युत एरियर दावों को 5.7.2011 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप प्रस्तुत किया था। केंद्र सरकार ने यद्यपि अलग से एनएफएल दरों की संस्तुति की थी, जो हिमाचल प्रदेश को मान्य नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के दावों को केवल राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटिड की दरों तक सीमित रखना न केवल घोर अन्याय है, बल्कि सहभागी राज्यों की भावनाओं के विरूद्व भी है क्योंकि एनएफएल की दरों को रियायती दरें माना जाता है तथा रियायती दरें कभी भी समझौते की दरें नहीं हो सकती।
9. एफ.सी.ए., 1980 के तहत प्रदेश को सड़कों के निर्माण के लिए वन भूमि के उपयोग की एवज़ में सीए तथा एनपीवी जमा करना होता है, जो अनिवार्य है। पिछले तीन वर्षों में प्रदेश ने विभिन्न प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की सड़कों के लिए सीए तथा एनपीवी के रूप में लगभग 60 करोड़ रुपये जमा किए हैं। निकट भविष्य में स्थिति और गंभीर होने वाली है, क्योंकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत आने वाली लगभग सभी सड़कें वन क्षेत्र से गुजरती हैं। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति को देखते हुए माननीय प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया कि प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की एनपीवी केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाए।
10. प्रधानमंत्री से भारत सरकार द्वारा ए.आई.बी.पी. तथा एफएमपी के अंतर्गत पूर्व स्वीकृत योजनाओं के लिये धनराशि जारी करने का आग्रह किया गया। अधिकांश ऐसी परियोजनाओं के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा निजी संसाधनों से ही भारी धनराशि व्यय की जा चुकी है तथा इसका भुगतान करना केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा अभी भी शेष है।
11. प्रदेश सरकार ने आग्रह किया है भांग के पौधों को उखाड़ना भी मनरेगा की पात्र गतिविधि शामिल किया जाए। ग्रामीण विकास विभाग ने पहले ही 22 अगस्त, 2016 से 5 सितम्बर, 2016 तक भांग/अफीम उन्मूलन अभियान शुरू किया था तथा इस अभियान के अंतर्गत 2145.79 हेक्टेयर क्षेत्र से भांग उखाड़ी गई।
12. प्रदेश सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत हिमालयन सर्किट के तहत 100 करोड़ रुपए की परियोजनाएं केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय को वित्त पोषण हेतु सौंपी हैं। मुख्यमंत्री ने हिमालयन सर्किट योजना के अंतर्गत धनराशि जारी करने के लिए भी केन्द्र सरकार से आग्रह किया।