नई दिल्ली। सरकार ने पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को प्रचलन से बाहर क्यों किया?
सरकार द्वारा नोटबंदी की घोषणा के 50 दिन बाद, भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है कि इस संबंध में अचानक की गई घोषणा के कारणों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
रिजर्व बैंक ने इन नोटों की भरपाई करने में लगने वाले समय के बारे में जानकारी देने से भी इंकार कर दिया।
आरबीआई ने आरटीआई में पूछे गये सवाल के जवाब में कहा, ‘‘सवाल किसी घटना की भविष्य की तारीख पूछने की प्रकृति का है जो आरटीआई कानून की धारा दो :एफ: के अनुसार सूचना के रुप में परिभाषित नहीं है।
रिजर्व बैंक ने सूचना का अधिकार कानून की धारा आठ :1: :ए: का हवाला देते हुए देश में करीब 20 लाख करोड रुपये की मुद्रा की नोटबंदी का कारण बताने से भी इंकार कर दिया।
यह धारा कहती है कि ऐसी सूचना जिसका खुलासा देश की संप्रभुता और एकता, सुरक्षा, राज्य के रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों, किसी दूसरे राष्ट्र के साथ संबंध पर पूर्वाग्रहपूर्ण प्रभाव डाले या अपराध के लिए उकसाए।
आरटीआई आवेदन में मांगी गई सूचना देने से इंकार करते हुए आरबीआई ने इस बात का कारण नहीं दिया कि इस मामले में छूट कैसे लागू होगी क्योंकि फैसला किया जा चुका है और ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि सूचना का खुलासा आरटीआई कानून की धारा आठ :1::ए: में दिये गये कारणों में कैसे मेल खायेगा।
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने पीटीआई भाषा से कहा, ‘‘जनहित का उपबंध वहां लागू होगा जहां छूट वाला उपबंध आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना पर लागू होता हो। इस मामले में मांगी गई सूचना किसी छूट उपबंध में नहीं आती।
उन्होंने कहा कि कानून बहुत स्पष्ट है कि जब कोई लोक प्राधिकार सूचना देने से इंकार करता है तो उसे स्पष्ट कारण बताने चाहिए कि इस मामले में छूट उपबंध कैसे लागू होता है।
हाल में इसने आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के मुद्दे पर फैसले के लिए हुई बैठक का ब्यौरा देने से इंकार किया था।
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