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नोटबंदी से छोटे व्यापारियों का व्यापार चौपट

%e0%a4%95%e0%a4%95जगदलपुर। नवम्बर-दिसम्बर में नई फसल आने के बाद ग्रामीण संस्कृति का अभिन्न अंग हाट-बाजारों में रौनक आ जाती है। क्रिसमस, दियारी, मेले-मड़ई सहित शादियों के लिए भी खरीददारी शुरू हो जाती है, हाट बाजार के व्यापारी इसे सीजन कहते हैं।

वहीं इस सीजन में 8 नवम्बर से जारी नोटबंदी के 50 दिन के बाद हालात सुधरने के आश्वासन के बाद व्यापारी और ग्राहक, किसान, मजदूर सभी का सीजन मंदा चल रहा है।

पर्याप्त मात्रा में नए नोट न आने की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी है। घर की जमा पूंजी साफ हो गई है और सभी चिंता में दुबला गए हैं कि इन हालातों में अब गुजारा कैसे चलेगा।

हाट-बाजार में कपड़ा बेचकर जीवन यापन कर रहे जगदलपुर के वस्त्र व्यवसायी अशोक पाण्डे ने बताया कि पहले इस सीजन में करपावंड बाजार में दस हजार तक की बिक्री आ जाती थी पर नोटबंदी के बाद यह 2 से 3 हजार तक सिमट गई है पांच सौ रुपए बाजार आने-जाने एवं दुकान लगाने का खर्च है।

सीजन में भाड़ा भी नहीं निकल रहा है साहूकार का माल बेच रहे हैं और खा रहे हैं पूंजी गायब होती जा रही है। कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। करपावंड निवासी हीरा निषाद ने बताया कि वे अपनी पत्नी के साथ हाट-बाजार में किराना दुकान लगाते हैं। सप्ताह में चार बाजार करते हैं।

प्रति बाजार दो सौ रुपए का खर्च आता है पहले 6 से 7 हजार बिक्री आती थी अब दो से तीन हजार रुपए आती है, धंधा घट कर आधा रह गया है, खेती – किसानी नहीं होती तो दो पहर खाने के लाले पड़ जाते। नोटबंदी सही फैसला तभी है जब हमारी जो रकम बैंक में जमा है उसे पहले की तरह सहजता से निकाल सकें।

ओडिशा के कोटागांव से मिट्टी के बरतन, घड़ा, मटकी बेचने वाले मंगनार के दीनबंधु ने बताया कि बिक्री की मत पूछो यह पूछो कि ऐसा कब तक चलेगा। पहले हजार- बारह सौ रुपए बिक्री आती थी और खर्च काटकर 200-300 रुपए का मुनाफा हो जाता था। अब तो बिक्री ही दो-तीन सौ रुपए आ रही है। बाजार खर्च निकलना मुश्किल हो गया है घर बड़ी मुश्किल से चल रहा है।

माटीगुड़ा के विशाल करीब 50 साल से हाट-बाजारों में पान दुकान संचालित करते हैं। उनका कहना है कि पचास सालों में व्यवसाय में ऐसी मंदी नहीं देखी यही सोचकर संतोष कर रहे हैं कि वे अकेले नहीं नोटबंदी के फैसले से सभी परेशान हैं। हाट-बाजार की आदत पड़ गई है।

इसलिए टाइम पास कर रहे हैं, पान दुकान के संचालन से जीवन-यापन तो दूर रोज के सब्जी की भी व्यवस्था नहीं हो पा रही है। होटल व्यवसाय में पिछले एक साल से लगातार घाटा हो रहा है घर के छह सदस्य हाथ बंटाते हैं। इसलिए हाट-बाजारों में होटल लगाना जारी रखे हुए हैं।
करपावंड के होटल व्यवसायी बुचन ने बताया कि बाजार जाकर होटल लगाने का खर्च 500 रुपए है। पहले पांच हजार तक बिक्री आती थी अब तीन हजार की बिक्री आ रही है हालात सुधरने का इंतजार कर रहे हैं।

नोट बंदी ने हाट बाजारों में चूड़ी के कारोबार पर भी असर डाला है करपावंड बाजार में विक्रेता अशोक नाग ने बताया कि पहले सीजन में 4-5 हजार की बिक्री आती थी, अब डेढ़ हजार भी नहीं आ रही है, सामने मेला-मड़ई है जिसकी तैयारी के लिए बैंक में नोटबंदी के बाद जमा किए गए 20 हजार रुपए निकालने जाते हैं पर 1000-500 से ज्यादा नहीं मिलता है नोटबंदी से पेट पर लात पड़ रही है।

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