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इस तरह आखिरी समय में बहुमत साबित करने से चूक गए येदियुरप्पा

कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की सरकार गिरने के बाद भी जहां एक ओर कांग्रेस-जद एस की राह की चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं, वहीं सत्ता पाने के लिए हर तरह का प्रयास करने वाली बीजेपी के सामने अपनी छवि सुधारने की चुनौती है। क्योंकि बीजेपी को उम्मीद थी कि सदन में येदियुरप्पा बहुमत जरूर साबित कर लेंगे। 15 मई की शाम को भाजपा ने कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों को अलग करने की पूरजोर कोशिश की थी।
बीजेपी ने सबसे पहले राज्य के ऐसे 18 निर्वाचन क्षेत्रों को शॉर्टलिस्ट किया जहां कांग्रेस और जेडीएस के विधायक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं लेकिन यह पूरी प्रक्रिया उस समय नाकाम हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिनों के लिए दिए गए फ्लोर टेस्ट की डेडलाइन को चार दिन में बदल दिया। इसके बाद दोनों पार्टियों ने अपने विधायकों को खरीद-फरोख्त से बचाने की पूरी कोशिश की।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि शुक्रवार शाम को ही हमें पता लग गया था कि हमारे साथ और विधायक जुड़ने वाले नहीं हैं मगर पार्टी के एक धड़े ने लंचटाइम तक उम्मीद नहीं छोड़ी थी। शनिवार को दोपहल 12.30-1 बजे के आस-पास बीएस येदियुरप्पा समझ गए थे कि उनके पास पर्याप्त नंबर नहीं है। कांग्रेस और जेडीएस विधायकों तक पहुंचने की आखिरी उम्मीद उस समय खत्म हो गई जब विश्वासमत से पहले कांग्रेस के डीके शिवकुमार को अपने विधायकों पर कड़ी नजर रखते हुए देखा गया। उनसे विधानसभा के अंदर बात करना संभव नहीं था। 

राज्य के एक भाजपा विधायक ने कहा, ‘येदियुरप्पा ने लंच के दौरान यह घोषणा की कि वह फ्लोर टेस्ट नहीं करेंगे और इस्तीफा दे देंगे।’ हालांकि चुनाव वाले दिन भाजपा के नेताओं को पूरा विश्वास था कि उन्हें बहुमत मिल जाएगा और यह निर्णय ले लिया गया था कि येदियुरप्पा राज्यपाल से सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए मुलाकात करेंगे। 15 दिनों की समयसीमा को बहुमत साबित करने के लिए जरूरी विधायकों को अपने पक्ष में करने के पर्याप्त माना जा रहा था। 

चूंकि जादुई आंकड़े से भाजपा केवल 8 नंबर की दूरी पर थी इसलिए उसने कांग्रेस और जेडीएस के 18 विधायकों की सूची बनाई थी। इस लिस्ट को कांग्रेस और जेडीएस उम्मीदवारों की कट्टर दुश्मनी के आधार पर बनाया गया था। यह वो विधायक थे जिन्होंने कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन का पुरजोर विरोध किया था। भाजपा सूत्रों ने बताया कि ऐसे विधायकों ने खुद भाजपा के पास अपनी दिलचस्पी भेजी थी। भाजपा और कांग्रेस के बीच हुई बातचीत का टेप ऑनलाइन आने से भी भाजपा को नुकसान हुआ।

कांग्रेस द्वारा भाजपा पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगाने की वजह से पार्टी की छवि खराब हुई। इसका खामियाजा पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने कहा,  “8-10 विधायकों को अपनी तरफ करना कोई मुश्किल बात नहीं थी लेकिन पार्टी को लगा कि यह पूरा विवाद लोकसभा चुनाव से 10 महीने पहले उसके लिए सही नही है। वैचारिक तौर पर भी इन दो पार्टियों के विधायकों को शामिल करना गलत था।”

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