अपहरण, सेंसरशिप और वित्तीय मुश्किलों का सामना कर रहे पाकिस्तानी पत्रकारों का कहना है कि आम चुनावों से पहले उन पर अधिकारियों का जबर्दस्त दबाव है। कहा जा रहा है कि सेना गुपचुप तरीके से मनमाफिक सत्ता परिवर्तन कराना चाहती है।
मीडिया प्रतिष्ठानों का कहना है कि 25 जुलाई को होने वाले मतदान से पहले सुरक्षा एजेंसियां चुनावी कवरेज पर रोक के लिए लगातार अभियान चला रही हैं। जिन्होंने घुटने टेकने से इन्कार कर दिया उन्हें लगातार निशाना बनाया जा रहा है। इस वजह से मीडिया प्रतिष्ठान के मालिकों को वित्तीय समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है।
इस क्रम में पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रसारणकर्ता ‘जियो टीवी’ को हफ्तों तक आंशिक रूप से ऑफ एयर रहना पड़ा, जब तक कि उसने सेना के साथ कथित समझौता नहीं कर लिया। इसी तरह देश के सबसे पुराने अखबार ‘डॉन’ ने अपने विक्रेताओं को डराने-धमकाने की शिकायत की।