अगले लोकसभा चुनाव से पहले गांवों और किसानों को लुभाने के लिए सरकारें कई कदम उठा सकती हैं। इन कदमों में किसान कर्ज माफी भी शामिल रहेगी। इस मद में सरकारों पर 40 अरब डॉलर (करीब 2.75 लाख करोड़ रुपये) से ज्यादा का बोझ पड़ने का अनुमान है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.5 फीसद के बराबर होगा।
अमेरिकी ब्रोकरेज फर्म बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने इस संदर्भ में रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट ऐसे में समय में आई है, जबकि एक दिन पहले ही कर्नाटक में राज्य सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने का एलान किया है। इससे राज्य सरकार पर पांच अरब डॉलर (करीब 34,300 करोड़ रुपये) का दबाव पड़ेगा। केंद्र सरकार ने भी बुधवार को खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
सरकार ने सभी खरीफ फसलों के लिए एमएसपी को कम से कम उनकी लागत से डेढ़ गुना कर दिया है। पिछले कुछ महीनों के दौरान महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों ने भी किसान कर्ज माफी की घोषणा की है। रिजर्व बैंक इस तरह के कदम का विरोध करता रहा है।
ब्रोकरेज फर्म ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2019 के आम चुनाव से पहले केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से ऐसे और भी कदम उठाए जाने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करना है, तो केंद्र सरकार को महंगाई और राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में संशोधन करना पड़ेगा। साथ ही किसानों को उनकी फसल पर लागत से डेढ़ गुना कीमत सुनिश्चित करने की स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश को लागू करने के लिए एमएसपी को लगातार बढ़ाने की जरूरत होगी।
रिपोर्ट में इन कदमों के सकारात्मक पक्ष का भी उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक, इससे ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़ेगी। 1.5 फीसद की कर्ज माफी से किसानों की आय तीन फीसद तक बढ़ने का अनुमान है। ब्रोकरेज फर्म ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि कर्ज माफी राज्यों को अपने खाते से करनी होगी। हालांकि बाजार को प्रभावित किए बिना ऐसा संभव नहीं हो सकता। कर्नाटक की राज्य सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स बढ़ाकर किसानों की कर्ज माफी का रास्ता चुना है। आने वाले दिनों में अन्य राज्य भी यह रास्ता अपना सकते हैं।