कभी लाल झंडे वाले वामपंथी दलों का गढ़ रहे बंगाल का रंग तेजी से बदल रहा है. राज्य में अब भगवा कहे जाने वाले राजनीतिक दल बीजेपी का उभार साफ तौर पर देखा जा सकता है. राज्य की राजनीति में इस बदलाव की गति साल 2016 के चुनावों के बाद तेज हुई है. हाल यह है कि कभी वाम दलों के समर्थक रहे लोग और उनके कार्यकर्ता ही अब बीजेपी की शरण में जाने लगे हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में बंगाल में बीजेपी चौथे स्थान पर थी. लेकिन इसी पार्टी ने इसके बाद हुए कूच बिहार के उपचुनाव में कांग्रेस और वाम उम्मीदवारों को भी पीछे छोड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल कर लिया. पिछले सभी चुनावों में चाहे वह उपचुनाव हो या पंचायत के चुनाव, हर जगह राज्य में बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
कूच बिहार में उपचुनाव से ही यह साफ हो गया था कि मतदाता टीएमसी के विकल्प में अब कांग्रेस या वाम दलों की जगह बीजेपी को चुन रहे हैं. पिछले कुछ चुनावों में यह बात और साफ हो गई. बीजेपी को हासिल वोटों के प्रतिशत में लगभग उतनी ही बढ़ोतरी देखी गई, जितनी की माकपा (CPI-M) के वोट में गिरावट आई. अगर चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए, तो यह दिखेगा कि वाम दलों को वोट करने वाले मतदाताओं का बहुत कम हिस्सा टीएमसी की तरफ गया है, जबकि इसका बड़ा हिस्सा बीजेपी की तरफ चला गया है.
बीजेपी को फायदे की वजह
असल में माकपा ने तो नब्बे के दशक से ही अपने समर्थकों को इस तरह से प्रशिक्षित किया था कि वे टीएमसी का विरोध करते रहें. इसलिए उनके मन में हमेशा टीएमसी की छवि एक विरोधी पार्टी की ही रही. साल 2011 में सत्ता से बाहर कर दिए जाने के बाद माकपा अपना आधार बरकरार नहीं रख पाई और उसके नेता सिर्फ अपना राजनीतिक आधार बनाने में लगे रहे.
लंबे समय तक सत्ता में रहने के दौरान माकपा ने संगठनात्मक ढांचा मजबूत करने की जरूरत नहीं समझी और प्रशासन पर ही निर्भर रहे. इसी वजह से सत्ता से बाहर जाने के बाद उनका आधार बिखर गया.
राज्य में बदल रहे राजनीतिक रंग की वजह से सभी ट्रेड यूनियन के साइन बोर्ड का रंग भी बदलने लगा है. जो थोड़े बहुत कट्टर माकपा समर्थक बचे हैं, उन पर हमले हो रहे हैं और उनके राजनीतिक आका उनका बचाव नहीं कर पा रहे.
तो इस हताश समूह ने आखिरकार बीजेपी का दामन थाम लिया है. बंगाल में अब मुख्य विपक्ष का रंग भगवा हो गया है. राज्य की राजनीति का खेल बदलने लगा है. टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने भी भांप लिया है कि उनके लिए सबसे बड़ा खतरा कौन है. वे केंद्र की बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए अगले साल 19 जनवरी को एक विशाल रैली करेंगी.
बीजेपी ने भी उसी ब्रिगेड परेड मैदान में रैली करने का निर्णय लिया है, जहां ममता बनर्जी की रैली होगी. राज्य में अब कांग्रेस और वाम दलों में कोई दम नहीं बचा है.