भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई सिंधु जल संधि दोनों देशों के बीच हुए विवादों के बावजूद बची हुई है और नदी जल प्रयोग के संबंध में उत्पन्न असहमति को सुलझाने का रूपरेखा मुहैया करा रही है।
स्टॉकहोम में कल पानी पर एक उच्च स्तरीय पैनल को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने कहा कि पानी सहयोग, साझा विकास और पारस्परिक समर्थन का एक स्रोत बन सकता है।
हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि ‘जल युद्ध’ में पड़ना अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक भूल होगी।
उन्होंने कहा, ‘जब हम इतिहास की तरफ देखते हैं, तो हम पाते हैं कि पानी पर सहयोग के माध्यम से पानी के लिए संघर्ष पर जीत हासिल की जा सकती है। हालांकि, पानी पर व्यवहार कुशलता कभी कभार ‘जल कूटनीति’ के रूप में जाना जाता है। पड़ोसी देशों को जल संसाधनों पर सहयोग से होने वाले लाभों की याद दिलायी जा सकती है।’
उन्होंने कहा अगर पानी का ठीक तरीके से बंटवारा हो, तो यह एक विश्वास बहाली का उपाय साबित हो सकता है। मोहम्मद ने कहा कि वर्तमान में संघर्ष के कई क्षेत्रों में इस तरह के विश्वास बहाली के उपायों की तत्काल जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुया सिंधु जल समझौता दोनों देशों के विवादों के बीच भी बचा रहा और नदी जल बंटवारे को लेकर उपजे विवादों को सुलझाने की रूपरेखा तैयार करने में मददगार साबित हुआ।’
उन्होंने कहा, ‘पश्चिम एशिया में जल उपयोग एक ऐसा क्षेत्र रहा है जहां कुछ देशों के बीच सहयोग संभव रहा है। वहीं मध्य एशिया में अमेरिका अराल सागर को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ निकट सहयोग कर रहा है।’
Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper National Hindi News Paper, E-Paper & News Portal