Tuesday , April 29 2025
अखिलेश यादव की तस्वीर से बाबा साहब का अपमान बताने वाली होर्डिंग पर भाजपा नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया।

होर्डिंग विवाद: अखिलेश यादव की तस्वीर से बाबा साहब का अपमान, भाजपा नेताओं ने की तीखी निंदा

लखनऊ, 29 अप्रैल।
अखिलेश यादव की तस्वीर से बाबा साहब का अपमान करने के मामले ने सियासी गर्मी बढ़ा दी है। समाजवादी पार्टी की छात्र इकाई लोहिया वाहिनी द्वारा लगाए गए एक होर्डिंग में डॉ. भीमराव अंबेडकर की आधी तस्वीर काटकर उसी स्थान पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की तस्वीर लगाए जाने को लेकर राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।

इस विवादित होर्डिंग को लेकर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री असीम अरुण, विधान परिषद सदस्य डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल, राज्यसभा सांसद बृज लाल, विधायक मीनाक्षी सिंह और प्रो. श्याम बिहारी लाल ने समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव पर गहरी नाराज़गी जताई है।

डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने इसे सपा की दूषित मानसिकता करार देते हुए कहा कि यह कृत्य बाबा साहब और उनके करोड़ों अनुयायियों का अपमान है, जिसे देश की जनता कभी स्वीकार नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी सपा सरकार के दौरान अंबेडकर के नाम पर बने संस्थानों और स्थानों से उनके नाम हटाए गए थे।

मंत्री असीम अरुण ने कहा कि बाबा साहब के समान स्तर पर खुद को दिखाना ही सपा की विकृत सोच को दर्शाता है। उन्होंने सख्त शब्दों में कहा कि यह न केवल कानूनन गलत है, बल्कि बाबा साहब के अनुयायियों की आस्था को ठेस पहुँचाने वाला है।

डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में दलित कार्मिकों के प्रमोशन में आरक्षण रोककर लाखों अधिकारियों का भविष्य चौपट किया था। उन्होंने इसे एक सुनियोजित साजिश करार दिया।

राज्यसभा सांसद बृज लाल ने कहा कि अखिलेश यादव बाबा साहब के पैरों की धूल भी नहीं हैं। वह खुद को उनके बराबर दिखाकर उनके विचारों का अपमान कर रहे हैं।

विधायक मीनाक्षी सिंह ने पूछा कि सपा हमेशा पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की बात करती है, लेकिन इस कृत्य से उसकी मानसिकता स्पष्ट हो चुकी है। उन्होंने अखिलेश यादव से इस अक्षम्य अपराध के लिए माफ़ी मांगने की मांग की।

प्रो. श्याम बिहारी लाल ने चेताया कि आने वाले समय में दलित समाज समाजवादी पार्टी को वोट नहीं देगा और इसका जवाब लोकतांत्रिक तरीके से देगा।

यह विवाद सपा के लिए न केवल राजनीतिक संकट का कारण बन सकता है, बल्कि दलित समाज के बीच उसकी स्वीकार्यता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।


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