बहराइच।
बाले मियां की बारात पर रोक को लेकर लंबे समय से जारी असमंजस अब स्पष्ट होता नजर आ रहा है। सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर 800 वर्षों से आयोजित हो रहे जेठ मेले में इस बार रुदौली से आने वाली ऐतिहासिक बारात नहीं आ पाएगी।
जिला प्रशासन ने कानून व्यवस्था और वर्तमान हालात को देखते हुए मेले पर प्रतिबंध लगाया है, जिसे चुनौती देने पर मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ पहुंचा। पहले 19 मई को सुनवाई तय थी, लेकिन याचिकाकर्ता की तत्काल सुनवाई की अपील पर मुख्य न्यायाधीश ने विशेष खंडपीठ गठित की और शनिवार को ही सुनवाई करा दी।
क्या कहा हाई कोर्ट ने?
विशेष खंडपीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि भीड़ एकत्रित नहीं की जा सकती। हालांकि, व्यापारिक गतिविधियों के लिए जायरीनों को सीमित संख्या में दरगाह पर जाने की अनुमति रहेगी।
यानी मेला पूरी तरह रद्द नहीं, लेकिन पारंपरिक रथयात्रा, शोभा यात्रा या जनसमूह के रूप में आने वाली “बाले मियां की बारात” पर प्रत्यक्ष रूप से रोक बरकरार रहेगी।
फैसले की अलग-अलग व्याख्याएं
समाज के विभिन्न वर्गों में इस निर्णय को लेकर मतभेद है।
- एक पक्ष मानता है कि हाई कोर्ट ने मेला अनुमति दे दी है।
- दूसरा पक्ष इसे प्रशासनिक रोक की पुष्टि मान रहा है।
इस बीच, जिला प्रशासन की आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा है, जिससे यह साफ हो सके कि 800 वर्षों की परंपरा को लेकर अंतिम निर्णय क्या होगा।
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क्या है बारात का महत्व?
रुदौली से बहराइच तक आने वाली यह ऐतिहासिक बारात, जिसे बाले मियां की बारात कहा जाता है, सैयद सालार मसूद गाजी की शहादत की स्मृति में निकलती है। यह धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक रही है, जिसमें लाखों जायरीन भाग लेते हैं।
पुलिस तैनात, व्यवस्था सख्त
मेले के दौरान मेला परिसर में पुलिस की सख्त तैनाती रहेगी। भीड़ नियंत्रण और किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए विशेष फोर्स की तैनाती की गई है।
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