मनोज शुक्ल
“कानपुर के स्कूल में टीचर ने नर्सरी के बच्चे को बेरहमी से पीटा। क्या हम अपने बच्चों के साथ सही सख्ती बरत रहे हैं या उन्हें मानसिक आघात दे रहे हैं? पढ़िए दिल को छू लेने वाली कहानी।”
कानपुर के एक छोटे से स्कूल की चुप्पी को तोड़ा जब 4 साल के मासूम बच्चे की पिटाई की घटना ने हर दिल को झकझोर दिया। एक छोटी सी गलती, होमवर्क न करना, और एक टीचर का गुस्सा, जो कभी भी बच्चे की मासूमियत को समझ नहीं सका।
42 सेकेंड, सात थप्पड़ और एक मासूम चेहरा। क्या ये गुस्से का इलाज था? क्या यह उस बच्चे की गलती थी, जो सिर्फ एक नन्हे से इंसान की तरह सीखने की कोशिश कर रहा था? जब उस बच्चे के गालों पर थप्पड़ों के निशान देखे गए, तो वह डर से कांपता हुआ घर लौटा। उसकी आँखों में खौफ और उसके दिल में एक गहरी चुप्प थी। जब परिजनों ने उससे पूछा, तो मासूम बच्चे ने फफकते हुए बताया कि उसकी टीचर ने उसे बाल पकड़कर मारा था। क्या उस छोटे से बच्चे ने सच में इतनी बड़ी गलती की थी, कि उसे इस कदर शारीरिक और मानसिक पीड़ा दी जाती?
उस बच्चे की हालत देखकर, उस मां-बाप का दिल टूट गया। उनका सपना था कि उनका बच्चा स्कूल जाए, अच्छे अंक लाए और आगे बढ़े, लेकिन इस दर्दनाक घटना ने उनके सपनों को रौंद दिया। उस दिन, स्कूल के बाहर खड़ी भीड़ में हर माता-पिता का चेहरा सन्नाटे में डूबा था। क्या हम अपने बच्चों को सिखाने के नाम पर उन्हें इतना घुटन भरा माहौल दे रहे हैं? क्या हम अपनी उम्मीदों और सख्ती के नाम पर उनके मासूम मनोबल को तोड़ रहे हैं?
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सीसीटीवी फुटेज ने पूरी घटना को बेनकाब कर दिया और पूरे शहर में इस घटना ने गहरी हलचल मचा दी। लेकिन क्या ये घटना सिर्फ कानपुर तक सीमित रहेगी? क्या हम ऐसे कई बच्चों के बारे में सोचेंगे, जो हमारे आसपास हैं, जिन्हें हम कभी नजरअंदाज कर देते हैं? क्या हमने कभी यह सोचा कि बच्चों पर शारीरिक सजा से कहीं ज्यादा असरदार बातों की जरूरत है? क्या हम अपने बच्चों के साथ प्यार और समझ का रवैया अपनाते हैं?
हम अपने बच्चों को क्या सिखा रहे हैं? क्या हम उन्हें खुद से प्यार करना, अपने हक के लिए खड़ा होना, और अपने सपनों को पूरा करने का हौसला दे रहे हैं? या फिर हम उन्हें हर कदम पर डर, मार और अपमान का सामना करने के लिए मजबूर कर रहे हैं?
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आज, जब हम इस घटना के बारे में सोचते हैं, तो हमें यह एहसास होना चाहिए कि हमें बच्चों के प्रति अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव की जरूरत है। बच्चों के साथ सख्ती नहीं, बल्कि सहानुभूति, समझ और सही दिशा में मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
हमारे बच्चे हमारे भविष्य हैं। उनका हर कदम, हर विचार, हर भावना अहम है। क्या हम उनके साथ उस सम्मान से पेश आ रहे हैं, जिसका वे हकदार हैं? क्या हम अपने बच्चों के साथ सख्ती की बजाय उन्हें समझने और उनकी आत्मा को सशक्त बनाने का प्रयास कर रहे हैं?
हमारा ये कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को वह वातावरण दें, जहाँ वे न केवल सुरक्षित रहें, बल्कि अपनी पूरी क्षमता को पहचानकर उसे निखार सकें।
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