रिपोर्ट – मनोज शुक्ल
“यूपी के सबसे बड़े खनन घोटाले में IAS विवेक वाष्णेय के खिलाफ मुकदमा चलाने से सरकार का इंकार। जानिए क्यों खनन घोटाले में फंसे बड़े अधिकारियों को मिली राहत और क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी।”
यूपी के सबसे बड़े खनन घोटाले में सीबीआई को झटका, सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति से किया इंकार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के खनन घोटाले ने एक बार फिर राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में सनसनी मचा दी है। राज्य सरकार ने विशेष सचिव (गृह) और 2009 बैच के आईएएस अधिकारी विवेक वाष्णेय के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना कर दिया है। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई द्वारा शुरू की गई जांच में विवेक वाष्णेय का नाम प्रमुख आरोपियों में शामिल था। वाष्णेय पर देवरिया में डीएम रहते हुए नियमों के खिलाफ खनन पट्टा देने का आरोप है।
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सीबीआई ने खनन घोटाले में विवेक वाष्णेय समेत कई अधिकारियों पर शिकंजा कसा था। इस केस में तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया था। सूत्रों के अनुसार, चार बड़े आईएएस अधिकारियों का इस मामले में सीधा संबंध पाया गया था। इनमें से तीन अधिकारी वर्तमान में भाजपा सरकार में अहम पदों पर कार्यरत हैं।
सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति क्यों रोकी?
सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति न देने का कारण “पर्याप्त सबूतों की कमी” बताया है। इससे अब सीबीआई विवेक वाष्णेय के खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम खनन घोटाले में शामिल अधिकारियों को राजनीतिक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में उठाया गया है।
विस्तृत जांच के बावजूद ठंडे बस्ते में मामला
सीबीआई ने देवरिया, सहारनपुर, हमीरपुर, कौशांबी, फतेहपुर, शामली, और सिद्धार्थनगर जैसे जिलों में खनन घोटाले की व्यापक जांच शुरू की थी। इस दौरान कई दस्तावेजी सबूत और गवाह जुटाए गए थे। चुनावी दौर में सीबीआई ने इस मामले में बड़े नेताओं और अफसरों पर शिकंजा कसा था, लेकिन सरकार की मंजूरी न मिलने से यह मामला अब ठंडे बस्ते में जा सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार
यह निर्णय सीबीआई की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करता है और दर्शाता है कि राजनीतिक दबाव में प्रशासनिक फैसले किस प्रकार बदले जा सकते हैं। खनन घोटाला न केवल यूपी की राजनीतिक व्यवस्था, बल्कि न्याय प्रणाली के कामकाज पर भी सवाल उठाता है।
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