“TMC सांसद कीर्ति आजाद ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर सवाल उठाते हुए इसे तानाशाही करार दिया। उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकारों के दौर में यह संभव नहीं। जानें उनके बयान की पूरी जानकारी।“
नई दिल्ली। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर विपक्ष की आलोचना तेज हो गई है। TMC सांसद कीर्ति आजाद ने इसे लोकतंत्र विरोधी बताते हुए कहा कि “यह तानाशाही की दिशा में उठाया गया कदम है।” उन्होंने कहा कि 1966-68 तक देश में सभी चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन बाद में गठबंधन सरकारों के बनने और गिरने के कारण यह व्यवस्था बदल गई।
कीर्ति आजाद ने कहा, “वन नेशन वन इलेक्शन के पीछे सरकार की मंशा पर सवाल उठता है। यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। विपक्ष से चर्चा किए बिना इसे लागू करने की कोशिश तानाशाही है।”
गठबंधन सरकार और चुनावी व्यवस्था
उन्होंने यह भी कहा कि भारत का लोकतंत्र विविधतापूर्ण है। गठबंधन सरकारें देश की राजनीतिक स्थिरता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। “अगर सरकार बार-बार गिरती है, तो चुनाव की जरूरत पड़ती है। ऐसे में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ व्यावहारिक नहीं है।”
सरकार पर विपक्ष को नजरअंदाज करने का आरोप
कीर्ति आजाद ने केंद्र सरकार पर विपक्ष की बात को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए कहा कि “लोकतंत्र में सबकी सहमति से फैसले लिए जाने चाहिए। यह सरकार केवल अपने एजेंडे को थोप रही है।”
वन नेशन वन इलेक्शन पर पक्ष-विपक्ष
केंद्र सरकार का तर्क है कि एक साथ चुनाव होने से समय और धन की बचत होगी। हालांकि, विपक्ष इसे संघीय ढांचे और लोकतंत्र के लिए खतरनाक मानता है। TMC के अलावा कांग्रेस, सपा, और अन्य विपक्षी दल भी इस पहल का विरोध कर रहे हैं।
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विशेष संवाददाता – मनोज शुक्ल
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