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आगामी भारतीय जनगणना

भारत में 2025 से शुरू होगी जनगणना: जानें महत्वपूर्ण तथ्य…

“भारत में 2025 से 2026 तक जनगणना का बड़ा सर्वेक्षण, जिसके बाद 2028 तक होगा सीटों का परिसीमन। धार्मिक जनगणना पर भी विचार।”

ई दिल्ली।भारत में अगले साल से जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2025 से लेकर 2026 तक यह व्यापक सर्वेक्षण अभियान चलेगा, जिसमें देश की समग्र जनसंख्या का आंकलन किया जाएगा। इस प्रक्रिया में जनसंख्या के साथ विभिन्न अन्य वर्गों के आंकड़े भी जुटाए जाएंगे, जो सरकार की नीतियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होंगे।

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सीटों का परिसीमन: 2028 तक पूरा होने की संभावना

जनगणना के बाद एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होगी सीटों का परिसीमन, जो भारतीय संसद और राज्य विधानसभाओं की सीटों के लिए क्षेत्रीय सीमाओं को फिर से निर्धारित करने में सहायक होगा। यह परिसीमन 2028 तक पूरा होने की संभावना जताई जा रही है। परिसीमन से लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों का ढांचा नया रूप लेगा, जिससे राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है।

धार्मिक आधार पर जनगणना पर विचार

एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद कदम के रूप में, सरकार धार्मिक समुदायों की जनसंख्या को अलग से दर्ज करने पर विचार कर रही है। इससे विभिन्न समुदायों की जनसंख्या संरचना का गहन विश्लेषण संभव होगा, जो नीतिगत फैसलों में अहम भूमिका निभा सकता है। यह कदम धार्मिक आधार पर विभाजन को बढ़ावा देने या इसे नियंत्रित करने पर भी प्रभाव डाल सकता है।

क्या है जनगणना और परिसीमन का महत्व?

जनगणना के माध्यम से सरकार को देश में जनसंख्या के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान होता है, जैसे कि उम्र, शिक्षा स्तर, लिंग अनुपात, रोजगार की स्थिति आदि। इन आंकड़ों से सरकार अपने संसाधनों का सही वितरण कर सकती है। परिसीमन प्रक्रिया लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों को जनसंख्या के अनुसार संतुलित करती है, जिससे जनप्रतिनिधि जनता के करीब हो सकें।

अधिक जानकारी के साथ जनगणना:

आगामी जनगणना में तकनीकी उन्नतियों का उपयोग किया जाएगा, जिससे सभी आंकड़े डिजिटल रूप में सुरक्षित होंगे।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव:

जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के बाद राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव देखने को मिल सकता है, जो जनप्रतिनिधियों की संरचना में फेरबदल कर सकता है।

संप्रदाय आधारित आंकड़े:

जनगणना में धार्मिक आधार पर आंकड़े जुटाने से विभिन्न संप्रदायों की जनसंख्या का सही अनुमान मिलेगा, जो नीति निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकता है।

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