बरेली। कटघर मोहल्ले के किला क्षेत्र में स्थित ढाई सौ वर्ष पुराने गंगा महारानी मंदिर पर कब्जे का आरोप लगाते हुए विवाद खड़ा हो गया है।
स्थानीय निवासी नरेंद्र सिंह ने दावा किया है कि यह मंदिर उनके पूर्वजों द्वारा बनवाया गया था और इसका नाम वर्ष 1905 से सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है। उन्होंने मुख्यमंत्री से अपील की है कि मंदिर को कब्जे से मुक्त कराकर पुनः स्थापित किया जाए।
मंदिर से पूजा-अर्चना तक का सफर और विवाद की जड़
नरेंद्र सिंह के मुताबिक, मंदिर में 1950 तक पूजा-अर्चना होती थी। लेकिन बाद में तत्कालीन पुजारी ने मंदिर का एक कमरा किराए पर दे दिया, जहां दौली रघुवर दयाल साधन सहकारी समिति संचालित होने लगी। समिति ने चौकीदार के रूप में दूसरे समुदाय के व्यक्ति को रखा। इसके बाद मूर्तियों को हटा दिया गया और धीरे-धीरे मंदिर पर कब्जा हो गया।
40 वर्षों से है कथित कब्जा
नरेंद्र का कहना है कि चौकीदार वाहिद अली ने पहले लोगों की आवाजाही बंद की और फिर मंदिर पर कब्जा कर लिया। 40 वर्षों से यह मंदिर सहकारी समिति के बोर्ड के अधीन है। नरेंद्र और उनके परिजनों ने जिला प्रशासन से मंदिर की जमीन को मुक्त कराने और दोबारा पूजा-अर्चना शुरू करने की मांग की है।
चौकीदार के परिवार का दावा
दूसरी ओर, चौकीदार वाहिद अली के बेटे साजिद का कहना है कि वर्ष 1976 से सहकारी समिति यहां संचालित है। उनके पिता को उसी समय नौकरी मिली थी और वे तभी से वहां रह रहे हैं। साजिद का आरोप है कि कुछ स्थानीय लोग अब जबरन जमीन पर दावा कर रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने समिति के सचिव को भी सूचित किया है।
मंदिर में पूजा क्यों हुई बंद?
मंदिर का दावा कर रहे पक्ष का कहना है कि इस क्षेत्र में धीरे-धीरे दूसरे समुदाय की आबादी बढ़ने लगी, जिससे हिंदुओं की आवाजाही कम हो गई। इस कारण पूजा-अर्चना बंद हो गई। मंदिर में कभी दूधिया शिवलिंग और शिव परिवार की मूर्तियां स्थापित थीं, लेकिन अब उनका कोई अता-पता नहीं है।
आंदोलन की तैयारी
मंदिर की जमीन वापस पाने के लिए स्थानीय निवासी जल्द ही जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपने की योजना बना रहे हैं। उनका कहना है कि यह केवल आस्था का मामला नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों की धरोहर का भी सवाल है।
(यह खबर स्थानीय प्रशासन और संबंधित पक्षों के बयान के आधार पर तैयार की गई है।)