भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने अप्रैल 2025 से एक बड़ा फैसला लेते हुए खाद्य पशु उत्पादन में कुछ विशिष्ट एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह निर्णय एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) की गंभीर चुनौती से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
FSSAI एंटीबायोटिक प्रतिबंध के अंतर्गत अब मांस, मांस उत्पादों, दूध, दूध उत्पादों, अंडे, पोल्ट्री और जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) में कुछ विशेष दवाओं और उनके वर्गों का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित होगा। इससे न केवल उपभोक्ताओं को एंटीबायोटिक अवशेषों से बचाया जा सकेगा, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा को भी बल मिलेगा।
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प्रतिबंधित दवाओं में कार्बाडॉक्स, क्लोरैमफेनिकोल, कोलिस्टिन, स्ट्रेप्टोमाइसिन और सल्फामेथॉक्साजोल शामिल हैं। वहीं जिन वर्गों को पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है, उनमें ग्लाइकोपेप्टाइड्स, नाइट्रोफ्यूरान्स और नाइट्रोइमिडाजोल्स शामिल हैं। ये सभी दवाएं अब पशुओं की परवरिश, उपचार या किसी भी खाद्य उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग नहीं की जा सकेंगी।
FSSAI ने साथ ही छह नई दवाओं के लिए सहनशीलता सीमा (tolerance limit) भी तय की है, जिससे अब निगरानी योग्य दवाओं की कुल संख्या 27 हो गई है। हालाँकि कुछ हाई प्रायोरिटी एंटीमाइक्रोबियल्स (HPCIAs) जैसे सेफक्विनोम और एनरोफ्लॉक्सासिन को लेकर विशेषज्ञों ने और सख्ती की मांग की है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए निगरानी व्यवस्था, परीक्षण प्रयोगशालाएं और सख्त प्रवर्तन नीति आवश्यक है। इसके अलावा पशुपालकों और उत्पादकों को वैकल्पिक उपायों—जैसे प्रोबायोटिक्स, हर्बल उत्पाद और जैविक समाधान—को अपनाने की आवश्यकता होगी।
FSSAI का यह निर्णय न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण प्रगति है, बल्कि वैश्विक एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस संकट से लड़ने में भारत की गंभीरता को भी दर्शाता है।