लखनऊ। हर साल 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इस घातक बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाना है। इस साल की थीम है – “एवरी ब्रेथ काउंट्स: स्टॉप निमोनिया इन इट्स ट्रैक” (हर सांस महत्वपूर्ण है: निमोनिया को शुरू होते ही रोकें)। इस अवसर पर, किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश यादव ने निमोनिया के खतरे को लेकर विशेष चेतावनी दी है, खासकर डायबिटीज के मरीजों और बच्चों के लिए।
बच्चों में निमोनिया का खतरा
डॉ. राजेश यादव के अनुसार, स्तनपान करने वाले बच्चों में निमोनिया होने का खतरा 90 प्रतिशत तक कम हो जाता है। मां का दूध बच्चों को निमोनिया, डायरिया और कुपोषण से बचाता है, जिससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। इसलिए उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बच्चों को जन्म से लेकर छह माह तक केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए।
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निमोनिया क्या है?
निमोनिया फेफड़ों में होने वाला एक संक्रमण है, जो बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण होता है। इस संक्रमण से फेफड़ों की वायु कोष्ठिका में सूजन आ जाती है या उसमें तरल पदार्थ भर जाता है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी हो जाती है। निमोनिया के लक्षण सर्दी-खांसी के सामान्य लक्षणों से मिलते-जुलते होते हैं, इसलिए इसे पहचानना और समय पर उपचार कराना बेहद जरूरी है।
निमोनिया के लक्षण
- तेज सांस लेना
- छाती का अंदर की ओर धंसना
- बच्चों का स्तनपान में असमर्थ होना
- लगातार खांसी
- बुखार और ठंड लगना
- सांस लेने में कठिनाई
- सीने में दर्द
- थकान और कमजोरी
- रक्तचाप में कमी और ऑक्सीजन स्तर का गिरना
बच्चों में निमोनिया से बचाव के उपाय
भाऊराव देवरस संयुक्त चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मनीष शुक्ला ने बताया कि बच्चों को समय पर विटामिन ए की खुराक देना उनकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके अलावा, खसरा, रूबेला, और न्यूमोकॉकल कन्जुगेट वैक्सीन के टीके लगवाने से निमोनिया और अन्य गंभीर संक्रमणों से बचाव होता है।
बच्चों में निमोनिया के खतरे से बचाव के लिए कुछ उपाय:
- सर्दियों में बच्चों को गर्म कपड़े पहनाएं और उन्हें नंगे पांव चलने से बचाएं।
- नवजात को गर्म कपड़ों से ढककर रखें।
- घरों में धुएं से बचने के लिए एलपीजी गैस का उपयोग करें।
- बच्चों को स्तनपान कराने की आदत डालें, जन्म से लेकर छह महीने तक केवल मां का दूध पिलाएं।
निमोनिया और कुपोषण: एक बड़ा खतरा
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबंधक, बाल स्वास्थ्य, डॉ. सूर्यांशु ओझा ने बताया कि पाँच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण निमोनिया है। प्रदेश में इस आयु वर्ग के बच्चों में कम से कम 15 प्रतिशत मौतें निमोनिया से होती हैं, और इसका प्रमुख कारण कुपोषण और गरीबी है। इस स्थिति से उबरने के लिए सांस कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें निमोनिया की पहचान, रोकथाम और उपचार (PPT – Protect, Prevent, Treat) की रणनीति को अपनाया गया है।
समय पर पहचान और उपचार से बच सकती है जान
डॉ. सलमान, राज्य स्तरीय बाल स्वास्थ्य प्रशिक्षक और वरिष्ठ बाल रोग चिकित्सक ने बताया कि अगर बच्चों में सांस लेने में कठिनाई या तेज सांस चलने जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत एक प्रशिक्षित चिकित्सक से सलाह लें। अगले दिन तक इंतजार करने और बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवाई देने से स्थिति और बिगड़ सकती है।
निमोनिया एक ऐसी बीमारी है, जो समय रहते पहचान और उपचार से नियंत्रित की जा सकती है। बच्चों और विशेषकर डायबिटीज के मरीजों को इस बीमारी से विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। उचित टीकाकरण, स्तनपान और स्वस्थ जीवनशैली निमोनिया से बचाव के सबसे प्रभावी उपाय हैं।