कोलकाता। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मुर्दाघर में कई वर्षों से शवों के अंगों की अवैध बिक्री का मामला सामने आया है। सीबीआई के जांचकर्ताओं ने दावा किया है कि पिछले सात वर्षों में अंगों की तस्करी से 200 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है। यह घोटाला राज्य के अन्य सरकारी अस्पतालों के मुर्दाघरों में भी फैल चुका है, जहां अज्ञात शवों से अवैध रूप से अंग निकाले जा रहे थे।
सीबीआई सूत्रों के अनुसार, इन अंगों को चार से आठ लाख रुपये में बेचा जाता था और इनकी तस्करी न केवल देश के अन्य राज्यों, बल्कि एक पड़ोसी देश में भी की जाती थी। जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि राज्य में चिकित्सा शिक्षा के विस्तार के कारण अंगों की मांग बढ़ गई थी। खासकर दिल, लीवर, और किडनी जैसी अंगों की।
आरजी कर अस्पताल के वित्तीय घोटाले की जांच के दौरान प्रमुख शिकायतकर्ता अख्तर अली से पूछताछ के बाद मुर्दाघर में चल रहे इस अवैध व्यापार का पता चला। जांचकर्ताओं को आरजी कर अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष के करीबी दो व्यक्तियों से भी सुराग मिला है, जिन्हें तीन बार पूछताछ के लिए बुलाया गया और अवैध अंग व्यापार के पुख्ता सबूत मिले।
सीबीआई ने पिछले सात वर्षों के पोस्टमॉर्टम रिकॉर्ड और लावारिस शवों से संबंधित दस्तावेजों की भी जांच की है, जिनमें कई अनियमितताएं पाई गई हैं। हालांकि, जांचकर्ताओं का मानना है कि यह घोटाला अभी पूरी तरह उजागर नहीं हुआ है और यह ‘हिमशैल की चोटी’ मात्र है।
दक्षिण बंगाल के एक सरकारी अस्पताल में भी हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई थी, जहां मुर्दाघर से शवों की अवैध निकासी की कोशिश की गई थी। उस मामले में भी अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता का शक है, लेकिन जल्दी ही इस मामले को दबा दिया गया। जांचकर्ताओं का मानना है कि राज्य के कई सरकारी अस्पतालों में पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टरों का एक सिंडिकेट इस अवैध व्यापार में शामिल है। आरजी कर अस्पताल के संदर्भ में संदीप घोष की भूमिका पर भी शक किया जा रहा है।
नियमों के अनुसार, अज्ञात शवों को सात दिन बाद जला दिया जाना चाहिए और किसी भी अंग को निकालने के लिए स्वास्थ्य विभाग की अनुमति आवश्यक होती है। लेकिन इस मामले में डॉक्टरों का यह सिंडिकेट अवैध रूप से अंगों की बिक्री को नियंत्रित कर रहा था।
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