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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव

नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया है। इस प्रस्ताव का नेतृत्व वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने किया है, जिसमें 55 सांसदों के हस्ताक्षर शामिल हैं। जस्टिस यादव पर आरोप है कि उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया, अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाया, और न्यायपालिका के उच्च आदर्शों का उल्लंघन किया।

क्या है विवाद?

विवाद तब शुरू हुआ जब जस्टिस शेखर यादव ने वीएचपी की लीगल सेल के एक कार्यक्रम में कहा कि,
“यह देश बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा। कठमुल्ले देश के लिए घातक हैं।”
उनकी इस टिप्पणी को भड़काऊ और पूर्वाग्रहपूर्ण माना गया, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों में आक्रोश फैल गया।

  1. भड़काऊ भाषण: न्यायपालिका की मर्यादा के विपरीत भड़काऊ बयान देना।
  2. पूर्वाग्रहपूर्ण रवैया: अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपातपूर्ण रुख अपनाने का आरोप।
  3. न्यायिक पद की गरिमा का उल्लंघन: संवैधानिक मूल्यों और न्यायपालिका के उच्च आदर्शों का अपमान।

महाभियोग प्रस्ताव का नेतृत्व कर रहे कपिल सिब्बल ने कहा,
“न्यायपालिका का काम निष्पक्षता और संविधान के आदर्शों के अनुसार न्याय करना है। जस्टिस यादव की टिप्पणी ने न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।”

विपक्ष: विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को गंभीर बताया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने की मांग की।

संघ समर्थक संगठनों की प्रतिक्रिया: वीएचपी और अन्य संघ संगठनों ने जस्टिस यादव का समर्थन करते हुए कहा कि उनकी बात को संदर्भ से अलग करके पेश किया जा रहा है।

महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति के पास प्रस्तुत किया गया है। अगर इसे स्वीकार किया जाता है, तो जस्टिस यादव के खिलाफ विस्तृत जांच होगी। इसके बाद इसे लोकसभा और राज्यसभा में मतदान के लिए रखा जाएगा। महाभियोग की प्रक्रिया भारत के इतिहास में बेहद दुर्लभ है।

अब तक जस्टिस यादव की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि वे अपनी टिप्पणी को लेकर स्पष्टीकरण देने के लिए तैयार हैं।

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