Thursday , January 9 2025

कैशलेस के लिये स्वदेशी ई-कामर्स की व्यवस्था करे केन्द्र: डा. संतोष राय

%e0%a4%b8%e0%a4%b5%e0%a4%beलखनऊ। हिन्दू महासभा लोकतांत्रिक पार्टी ने बुधवार को देश में नोटबंदी के बाद कैशलेस को बढ़ावा दिये जाने के बीच कहा है कि वर्तमान समय में देश में नगदीमुक्त अर्थव्यवस्था पूर्णरूप से विदेशियों पर निर्भर है और यदि केन्द्र सरकार वाकई इस मामले में गंभीर है तो पहले वीजा, मास्टरकार्ड और पेपर से बाहर निकलकर बैंकिंग प्रणाली को बदले और पूर्णतयः स्वदेशी ई-कामर्स की व्यवस्था करे।

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संतोष राय ने आज यहां जारी अपने बयान में कहा कि पुरे विश्व में नगदीमुक्त अर्थव्यस्था का 90 प्रतिशत लेन-देन अभी भी अमेरिकी कम्पनियों के पास है।

जिसका उदाहरण है वीजा एवं मास्टरकार्ड जैसी कम्पनियां हैं, जो कि पुरे विश्व में लेन-देन के लिए मार्ग उपलब्ध कराती हैं जिसे ई-कॉमर्स में पेमेंट गेटवे कहा जाता है, और इस व्यवस्था से 90 प्रतिशत से अधिक लेन-देन इन्ही के माध्यम से होता है।

विश्व के सभी बैंकों के क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड पर वीजा या मास्टरकार्ड लिखा होता है। भारत अथवा विश्व के जितने भी ई-वालेट हैं उनके दो ही मार्ग हैं या तो वे वीजा चुने या मास्टरकार्ड। यहाँ तक कि पेपल जैसी पेमेंट गेटवे का मार्ग देने वाली प्रसिद्ध कम्पनी भी अमेरिकी ही है।

मेरा यह तर्क अमेरिकी विरोधी न समझा जाए अपितु नगदीमुक्त अर्थव्यस्था पर इनकी गुलामी करने जैसा है। हम अभी भी गुलामी कि ओर बढ़ रहे हैं और इन पर आश्रित होने का अर्थ यह है की हम विकलांग है और हमारी अर्थव्यस्था को बैसाखी की आवश्यकता है।

इन पर आधारित होने से हमारे बैंक खाते का विवरण ये कम्पनियां ले लेती हैं और ये कम्पनियां भी हमारी अर्थ नीति को प्रभावित करती होंगी।

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा0 राॅय ने कहा कि विदेशी आश्रित नगदीमुक्त अर्थव्यस्था भारत कि आर्थिक एवं सुरक्षा की दृष्टि से बिलकुल उचित नहीं है अतः इस समय तो बिलकुल नही जब तक हम पूर्णतय शत प्रतिशत स्वदेशी ई-कामर्स व्यस्था न बना लें।

कुछ भारत की कम्पनियां हैं जो यह आर्थिक गलियारा देती हैं लेकिन वे भी विदेशी आश्रित हैं, क्योंकि वह आर्थिक गलियारा भी कहीं न कहीं से वीजा, मास्टरकार्ड या पेपल से ही होकर गुजरता हैै।

हिन्दू महासभा लोकतांत्रिक के नेता डा. राय ने कहा कि हम जितना नगदीमुक्त अर्थव्यस्था की ओर बढ़ रहें तो कहीं न कहीं से हम इन विदेशी कम्पनियों कि दासता को भी स्वीकार कर रहें हैं और ये कम्पनियां हमारी अर्थ नीति को भी प्रभावित करती हैं।

भारत की पूर्व कि सरकारों ने गड्ढा खोद कर हमें दासता कि ओर धकेला तो आज कि वर्तमान सरकार उन गड्ढों में पानी भर कर कह रही कि जिसे बाहर आना है तो हमारी शर्तें स्वीकार करे अन्यथा उस भरे हुए गड्ढे में डूब जायए अब ऐसी स्थिति में हमें शर्तें स्वीकार ही करनी पड़ेंगी जीवित जो रहना है।

E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com