“रूप चौदस या नरक चतुर्दशी पर महालक्ष्मी की कृपा पाने के लिए साफ-सफाई और विशेष उबटन का महत्व बताया गया है। जानें उबटन बनाने की विधि, यमराज के दीपदान का महत्व और उनसे जुड़ी पौराणिक कहानियाँ।“
लखनऊ। रूप चौदस, जिसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन महालक्ष्मी की कृपा पाने के लिए स्वयं को सजाने-संवारने और विशेष उबटन लगाने का प्रचलन है। हल्दी, चंदन, केसर, बेसन, दूध और गुलाब जल से तैयार उबटन चेहरे पर निखार लाने और त्वचा को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
यमराज के लिए दीपदान की पौराणिक मान्यता
शाम को यमराज के लिए दीपदान का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। यह परंपरा यमराज और यमदूतों से जुड़ी कथा से प्रेरित है। दीपदान का शुभ मुहूर्त शाम 5:45 से रात 8:15 बजे तक है।
प्राचीन यमराज मंदिर और उनकी पौराणिक कहानियाँ:
हिमाचल का यमराज मंदिर
चंबा के भरमौर में स्थित है, जहां यमराज चार अदृश्य द्वारों (सोना, चांदी, तांबा, लोहा) से आत्माओं का न्याय करते हैं।
मथुरा का यमुना-यमराज मंदिर
भाईदूज पर भाई-बहन इस मंदिर में एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि यमुना में स्नान करने से असमय मृत्यु का भय समाप्त होता है।
वाराणसी का धर्मेश्वर मंदिर
यहां यमराज ने शिव जी की तपस्या कर अपने जीवन-मृत्यु की जिम्मेदारी ग्रहण की थी।
उबटन का तरीका
हल्दी, चंदन, बेसन, और गुलाब जल मिलाकर उबटन बनाएं और शरीर पर लगाएं। इससे त्वचा पर चमक आती है और स्वास्थ्य लाभ होते
“विश्ववार्ता परिवार की तरफ से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ”
देश दुनिया से जुड़ी और भी रोचक जानकारी के लिए हमारे विश्ववार्ता पर बने रहें…..
रिपोर्ट -मनोज शुक्ल